पुणे के शिवाजीनगर स्थित कृषि महाविद्यालय परिसर में मौजूद केंद्रीय कृषि-मौसम विज्ञान वेधशाला (सेंट्रल एग्रो-मेटेरोलॉजिकल ऑब्ज़र्वेटरी – CAgMO) पिछले 160 वर्षों से अधिक समय से मौसम और वातावरण से जुड़े आंकड़ों को दर्ज कर रही है। वर्ष 1856 में स्थापित यह वेधशाला देश की सबसे पुरानी मौसम निगरानी संस्थाओं में से एक मानी जाती है।
हर दिन तड़के करीब 4:30 बजे, रात्रि पाली में तैनात मौसम वैज्ञानिक एक साधारण-सा दिखने वाला रबर का गुब्बारा आसमान में छोड़ते हैं। यह गुब्बारा देखने में भले ही सामान्य हो, लेकिन इसके साथ अत्यंत संवेदनशील वैज्ञानिक उपकरण जुड़े होते हैं, जो ऊपरी वायुमंडल की महत्वपूर्ण जानकारियां इकट्ठा करते हैं।
इस गुब्बारे का वजन लगभग 350 ग्राम होता है और इसमें करीब 500 ग्राम हाइड्रोजन गैस भरी जाती है। इसके साथ लगी बैटरी दो से तीन घंटे तक काम करने में सक्षम होती है। जैसे-जैसे गुब्बारा ऊपर उठता है, यह आमतौर पर 25 से 30 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंच जाता है। इस दौरान इसमें लगे सेंसर हवा की गति, तापमान, आर्द्रता और अन्य वायुमंडलीय परिस्थितियों से जुड़ा डेटा जमीन पर स्थित केंद्र को भेजते रहते हैं।
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CAgMO न केवल ऊपरी वायुमंडल का अध्ययन करता है, बल्कि पुणे में तापमान, नमी, वर्षा, प्रदूषण स्तर और ओस जैसी जानकारियों को भी लगातार दर्ज करता आ रहा है। यह डेटा कृषि, मौसम पूर्वानुमान और जलवायु अध्ययन के लिए बेहद अहम माना जाता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि आधुनिक तकनीक के बावजूद इस वेधशाला की पारंपरिक और निरंतर निगरानी प्रणाली आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। पिछले डेढ़ सौ वर्षों से अधिक समय से यह संस्थान आसमान के बदलते मिजाज को समझने और दर्ज करने में अहम भूमिका निभा रहा है।
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