कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने संसद में पेश किए गए नए विधेयकों पर कड़ा विरोध जताते हुए कहा है कि “हम मध्ययुगीन काल में लौट रहे हैं।” उनके अनुसार, ये विधेयक लोकतंत्र और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सीधे प्रभाव डाल सकते हैं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस (TMC) की प्रमुख ममता बनर्जी ने भी विधेयकों की आलोचना की। उन्होंने कहा कि यह प्रयास न्यायपालिका की स्वतंत्रता को समाप्त करने और लोकतांत्रिक संस्थानों की शक्ति को कमजोर करने की दिशा में है। बनर्जी के अनुसार, यह विधेयक सरकार के निरंकुश नियंत्रण की संभावनाओं को बढ़ा सकते हैं।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और DMK प्रमुख एम.के. स्टालिन ने भी इन विधेयकों की निंदा की। उन्होंने कहा कि इस तरह के कानून तानाशाही की शुरुआत करते हैं और लोकतंत्र मेंchecks and balances को खतरे में डालते हैं। उनके अनुसार, विधायकों और न्यायपालिका के बीच संतुलन बनाए रखना लोकतंत्र के लिए अनिवार्य है।
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विशेषज्ञों का मानना है कि ये प्रतिक्रियाएं केवल राजनीतिक विरोध नहीं हैं, बल्कि यह संकेत भी हैं कि विधेयकों के लागू होने पर न्यायपालिका की स्वतंत्रता और विधायी शक्ति के बीच संतुलन प्रभावित हो सकता है।
इस बीच विपक्षी दल विधेयकों के खिलाफ संसद और सार्वजनिक मंचों पर विरोध जारी रखेंगे। विपक्ष का तर्क है कि लोकतंत्र में किसी भी विधेयक को पारित करने से पहले उसकी पारदर्शिता और प्रभाव का पूरी तरह मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
कुल मिलाकर, राहुल गांधी, ममता बनर्जी और एम.के. स्टालिन की प्रतिक्रियाएं इन विधेयकों को लेकर बढ़ती राजनीतिक चिंता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर जागरूकता को दर्शाती हैं।
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