अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के परमाणु दायित्व कानून को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप लाने की मंशा जताते हुए नेशनल डिफेंस ऑथराइजेशन एक्ट (NDAA) पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। यह कदम भारतीय संसद द्वारा शांति (SHANTI) विधेयक को पारित किए जाने के दो दिन बाद उठाया गया है। शांति विधेयक के तहत भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी का रास्ता साफ हुआ है और किसी परमाणु दुर्घटना की स्थिति में ऑपरेटर की अधिकतम दायित्व सीमा 3,000 करोड़ रुपये तय की गई है।
एनडीएए अमेरिका का एक महत्वपूर्ण वार्षिक कानून है, जिसके जरिए रक्षा मंत्रालय के बजट और खर्चों को मंजूरी दी जाती है। मौजूदा वित्त वर्ष अक्टूबर 2025 से सितंबर 2026 तक का है। इस कानून में एक प्रावधान के तहत अमेरिकी विदेश मंत्री को निर्देश दिया गया है कि वे भारत सरकार के साथ मिलकर 2008 के भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के कार्यान्वयन का आकलन करने के लिए एक संयुक्त परामर्श तंत्र स्थापित करें।
कानून में यह भी कहा गया है कि इस तंत्र का उद्देश्य भारत के घरेलू परमाणु दायित्व नियमों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाना होगा। अमेरिकी कांग्रेस के कुछ सदस्यों ने आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शांति विधेयक को “बुलडोज़” कर पास कराया ताकि अमेरिका के साथ रिश्तों को मजबूत किया जा सके, जिसे कभी भारत का “अच्छा मित्र” माना जाता था।
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विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से भारत-अमेरिका परमाणु सहयोग को नई गति मिल सकती है, हालांकि देश के भीतर परमाणु सुरक्षा और दायित्व से जुड़े सवालों पर बहस तेज होने की संभावना है।
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