नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना अमेरिका ने की थी, जिसका उद्देश्य वैश्विक शांति, सहयोग और न्यायसंगत नियमों के पालन को सुनिश्चित करना था। यह व्यवस्था विश्व के देशों के बीच विवादों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने, व्यापार को सुचारू बनाने और सामरिक सहयोग को मजबूत करने में सहायक रही है।
लेकिन अब, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में इस व्यवस्था को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। ट्रंप की नीतियों में राजनीतिक और आर्थिक टकरावों का बढ़ना देखा गया है, जिसने वैश्विक स्तर पर तनाव बढ़ा दिया है। उनकी "अमेरिका फर्स्ट" नीति ने पारंपरिक गठबंधनों और समझौतों को कमजोर किया है।
ट्रंप प्रशासन ने कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों से पीछे हटने का निर्णय लिया, जैसे पेरिस जलवायु समझौता और ईरान परमाणु समझौता, जिससे वैश्विक सहयोग प्रभावित हुआ है। साथ ही, व्यापार युद्ध और सुरक्षा नीति में कठोर रुख ने कई देशों के साथ रिश्तों में दरार पैदा की है।
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विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह प्रवृत्ति जारी रही, तो नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। इससे वैश्विक स्थिरता, आर्थिक विकास और सुरक्षा सहयोग को भारी नुकसान हो सकता है।
हालांकि, कुछ देशों ने इस व्यवस्था को बचाए रखने और नए तरीके से मजबूत करने के लिए कदम उठाए हैं। वैश्विक समुदाय को मिलकर काम करना होगा ताकि ट्रंप के प्रशासन से उत्पन्न संकट का सामना किया जा सके और एक स्थिर, न्यायसंगत और सहयोगी विश्व व्यवस्था बनाए रखी जा सके।
इसलिए, यह सवाल कि ट्रंप की अध्यक्षता में यह व्यवस्था कितनी टिकेगी, विश्व राजनीति में एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय बना हुआ है।
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