अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हुई हालिया फोन कॉल ने दोनों देशों की प्राथमिकताओं के प्रति भिन्न दृष्टिकोण को एक बार फिर उजागर कर दिया है। दक्षिण कोरिया के बुसान में पिछले माह हुई मुलाकात के करीब एक महीने बाद हुई इस कॉल ने यह याद दिलाया कि व्यापार और तकनीकी सहयोग के दो प्रमुख क्षेत्रों में दोनों देशों को अब भी अपने-अपने वादों को आगे बढ़ाना है।
चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग और अमेरिकी वित्त मंत्री स्कॉट बेसेंट ने पुष्टि की कि यह कॉल ट्रम्प की ओर से शुरू की गई थी। हालांकि दोनों देशों के आधिकारिक वक्तव्यों में विवादों को सुलझाने की इच्छा दिखाई देती है, लेकिन कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर स्पष्ट मतभेद भी सामने आए हैं—सबसे प्रमुख ‘रेड लाइन’ यानी ताइवान को लेकर।
शी जिनपिंग ने ताइवान के मुद्दे को सिर्फ एक क्षेत्रीय प्रश्न नहीं, बल्कि एक व्यापक अंतरराष्ट्रीय सिद्धांतों से जुड़ा विषय बताया है। यह संदेश अमेरिका के लिए यह स्पष्ट संकेत है कि बीजिंग के लिए “वन चाइना प्रिंसिपल” पर किसी भी प्रकार की लचीलापन अस्वीकार्य है। चीन के अनुसार, ताइवान पर अमेरिकी रुख में किसी भी तरह का विचलन दोनों देशों के संबंधों को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
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ट्रम्प प्रशासन ने हाल के वर्षों में ताइवान के प्रति समर्थन बढ़ाया है, जिससे बीजिंग की चिंताएं और बढ़ गई हैं। फोन कॉल में दोनों पक्षों ने सहयोग बढ़ाने की बात तो कही, लेकिन रणनीतिक अविश्वास और संवेदनशील मुद्दों पर टकराव स्पष्ट रूप से सामने आया।
यह बातचीत दर्शाती है कि अमेरिका-चीन संबंधों में तनाव कम होने के बजाय नई संरचनाओं में ढल रहा है, जहाँ ताइवान सबसे महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है।
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