देश के 56 पूर्व न्यायाधीशों ने 18 पूर्व न्यायाधीशों द्वारा हाल ही में जारी किए गए बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि इसमें न्यायिक स्वतंत्रता के नाम पर राजनीतिक पक्षपात छिपाने की प्रवृत्ति दिखाई देती है। उन्होंने कहा कि यह एक “पूर्वानुमेय पैटर्न” बन गया है, क्योंकि हर बड़े राजनीतिक विकास पर समान समूह से बयान जारी किए जाते हैं।
पूर्व न्यायाधीशों ने कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता भारतीय लोकतंत्र की बुनियादी नींव हैं। हालांकि, उनका कहना था कि इस तरह के बयान अक्सर राजनीतिक विवादों और घटनाओं के संदर्भ में न्यायपालिका के दृष्टिकोण को प्रभावित करने का प्रयास प्रतीत होते हैं।
उनका यह भी मानना है कि न्यायाधीशों के सार्वजनिक बयान समाज में भ्रांति और विवाद पैदा कर सकते हैं, और इससे न्यायपालिका की छवि पर नकारात्मक असर पड़ता है। पूर्व न्यायाधीशों ने जोर देकर कहा कि न्यायपालिका को हमेशा संवैधानिक जिम्मेदारियों और कानूनी प्रक्रिया के दायरे में रहकर ही प्रतिक्रिया देनी चाहिए, न कि राजनीतिक बहस में हिस्सा लेकर।
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उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में राजनीतिक घटनाओं पर विचार करना और न्यायिक संस्थाओं की संरचना को समझना आवश्यक है, लेकिन इसे समीक्षा और आलोचना के योग्य ढंग से किया जाना चाहिए।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस बयान के बाद न्यायपालिका और राजनीतिक दलों के बीच संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता और भी बढ़ गई है। न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखना लोकतंत्र की स्थिरता और जनता के विश्वास के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
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