केंद्र सरकार ने मणिपुर में वर्ष 2023 में हुई जातीय हिंसा की जांच कर रहे आयोग को एक बार फिर रिपोर्ट सौंपने के लिए समय-सीमा बढ़ा दी है। मंगलवार (16 दिसंबर 2025) को जारी एक सरकारी अधिसूचना के अनुसार, अब यह आयोग अपनी रिपोर्ट 20 मई 2026 तक केंद्र सरकार को सौंपेगा।
तीन सदस्यीय यह जांच आयोग 4 जून 2023 को गठित किया गया था, जिसकी अध्यक्षता गुवाहाटी हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अजय लांबा कर रहे हैं। आयोग के अन्य दो सदस्य सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हिमांशु शेखर दास और सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी अलोका प्रभाकर हैं। गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि आयोग “यथाशीघ्र, लेकिन 20 मई 2026 से पहले नहीं” अपनी रिपोर्ट सौंपेगा।
इस आयोग को मणिपुर में हिंसा और दंगों के कारणों, उनके फैलाव और विभिन्न समुदायों को निशाना बनाए जाने की घटनाओं की जांच का दायित्व सौंपा गया है। आयोग को यह भी देखना है कि हिंसा को रोकने और उससे निपटने में प्रशासनिक स्तर पर कोई चूक या लापरवाही तो नहीं हुई।
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गौरतलब है कि आयोग को पहले अपनी पहली बैठक के छह महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपनी थी। हालांकि, इसके बाद से आयोग को तीन बार और समय-सीमा बढ़ाई जा चुकी है—13 सितंबर 2024, 3 दिसंबर 2024 और 20 मई 2025। ताजा आदेश चौथी बार विस्तार से जुड़ा है। पिछली बार आयोग को 20 नवंबर तक का समय दिया गया था।
4 जून 2023 की अधिसूचना के अनुसार, 3 मई 2023 को मणिपुर में बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें कम से कम 260 लोगों की जान चली गई और हजारों लोग बेघर हो गए। आगजनी की घटनाओं में बड़ी संख्या में घर और संपत्तियां जलकर खाक हो गईं।
यह हिंसा तब शुरू हुई थी, जब पहाड़ी इलाकों में रहने वाले कुकी-जो जनजातीय समुदाय ने मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की हाईकोर्ट की सिफारिश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। वर्तमान में मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू है, जो 13 फरवरी 2025 को लगाया गया था। राज्य के राज्यपाल अजय कुमार भल्ला विभिन्न वर्गों से संवाद कर हालात सामान्य करने के प्रयास कर रहे हैं।
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