छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक वरिष्ठ माओवादी नेता की कथित मुठभेड़ (एनकाउंटर) की जांच की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि यह याचिका “केवल आशंका और अटकलों पर आधारित” है और इसमें कोई ठोस सबूत या तथ्य प्रस्तुत नहीं किया गया है, जो न्यायिक जांच के आदेश के लिए पर्याप्त हो।
याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि सुरक्षा बलों ने जिस माओवादी नेता को मुठभेड़ में मारे जाने की बात कही है, वह दरअसल हिरासत में लिया गया व्यक्ति था और बाद में फर्जी एनकाउंटर में उसकी हत्या की गई। उन्होंने अदालत से स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की मांग की थी।
राज्य सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा कि पूरी कार्रवाई कानून के दायरे में की गई थी और मुठभेड़ वास्तविक थी। सुरक्षा बलों ने आत्मरक्षा में जवाबी कार्रवाई की थी। सरकार ने अदालत को बताया कि सभी सबूत, फॉरेंसिक रिपोर्ट और दस्तावेज इस बात की पुष्टि करते हैं कि किसी भी प्रकार की अवैध कार्रवाई नहीं हुई।
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अदालत ने सरकार के पक्ष से सहमति जताते हुए कहा कि केवल संदेह या धारणा के आधार पर जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता। न्यायमूर्ति ने अपने आदेश में कहा, “न्यायिक प्रक्रिया ठोस साक्ष्यों पर आधारित होती है, न कि कल्पनाओं पर।”
हालांकि, अदालत ने यह स्पष्ट किया कि यदि भविष्य में कोई ठोस सबूत या तथ्य सामने आते हैं, तो याचिकाकर्ता को फिर से अदालत का दरवाज़ा खटखटाने की स्वतंत्रता होगी।
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