सांसदों की बढ़ती शिकायतों के बाद केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) ने संसद परिसर में तैनात अपने कर्मियों की तैनाती अवधि और चयन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं। नई नीति के अनुसार, संसद में तैनात CISF कर्मियों की न्यूनतम सेवा अवधि अब तीन वर्षों से बढ़ाकर चार वर्ष कर दी गई है। अधिकारियों का कहना है कि इस कदम का उद्देश्य सांसदों से परिचय बढ़ाना है, जिससे सुरक्षा प्रक्रिया अधिक सहज और प्रभावी हो सके।
CISF के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि संसद परिसर में तैनाती अब केवल उन्हीं कर्मियों को दी जाएगी जिनकी सेवा रिकॉर्ड पूर्णतः स्वच्छ हो और जो मनोवैज्ञानिक परीक्षणों में भी सफल हों। यह बदलाव उन घटनाओं के बाद लागू किया गया है, जब कई सांसदों ने शिकायत की थी कि उन्हें संसद भवन में प्रवेश के दौरान CISF कर्मियों द्वारा रोका या पहचान सत्यापन के लिए अधिक पूछताछ की गई।
सूत्रों के अनुसार, कई सांसदों ने शिकायत की थी कि कुछ सुरक्षा कर्मियों को सांसदों के चेहरे पहचानने में कठिनाई होती है, जिससे अनावश्यक देरी और असहज स्थिति उत्पन्न होती है। संसद भवन की उच्च सुरक्षा प्रकृति को देखते हुए CISF कर्मियों की नियमित अदला-बदली होती थी, लेकिन अब लंबे कार्यकाल से कर्मचारी परिसर, प्रक्रियाओं और सांसदों से अधिक परिचित हो सकेंगे।
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सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि चार साल की तैनाती न केवल सांसद–सुरक्षा कर्मी तालमेल मजबूत करेगी, बल्कि सुरक्षा प्रोटोकॉल में निरंतरता भी सुनिश्चित करेगी। नई नीति में यह भी तय किया गया है कि विशेष प्रशिक्षण प्राप्त कर्मियों को ही संसद में तैनात किया जाएगा।
इस संशोधित नीति के लागू होने से संसद सुरक्षा प्रबंधन में अधिक पारदर्शिता, संवेदनशीलता और दक्षता आने की उम्मीद है।
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