भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्यपालों को राज्यों के सच्चे मार्गदर्शक और दार्शनिक की तरह कार्य करना चाहिए, न कि उनके विरोधी की तरह। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि राज्यपालों की ज़िम्मेदारी है कि वे राज्य सरकारों के साथ सहयोगी और संवैधानिक भावना के अनुरूप व्यवहार करें।
मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि राज्यपालों को विधानसभा से पारित विधेयकों को लेकर “जितनी जल्दी संभव हो” कार्य करना चाहिए, न कि “जितनी जल्दी सुविधाजनक हो”। उन्होंने कहा कि विधेयकों को लंबे समय तक रोकना लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ है और इससे जनता के हित प्रभावित होते हैं।
केरल सरकार की ओर से पेश तर्कों में यह भी कहा गया कि राज्यपालों द्वारा विधेयकों पर सहमति देने में देरी अक्सर उन्हीं राज्यों में देखने को मिलती है जहां विपक्षी दलों की सरकारें हैं। इससे यह संदेश जाता है कि राज्यपाल राजनीतिक दबाव में काम कर रहे हैं, जबकि उनकी संवैधानिक भूमिका निष्पक्ष और मार्गदर्शक की होनी चाहिए।
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विशेषज्ञों का मानना है कि CJI की यह टिप्पणी राज्यपालों और राज्य सरकारों के बीच लंबे समय से चली आ रही तनातनी पर प्रकाश डालती है। यह मुद्दा विशेषकर उन राज्यों में बार-बार उठता है जहां केंद्र और राज्य अलग-अलग राजनीतिक दलों के अधीन होते हैं।
इस टिप्पणी से उम्मीद की जा रही है कि भविष्य में राज्यपालों की भूमिका और अधिक संवैधानिक दायरे में सीमित होगी और राज्यों के साथ टकराव कम होगा।
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