राजस्थान में पिछले दो वर्षों में कुल 20 हिरासत मौतों की घटनाएं दर्ज की गई हैं। इन मामलों ने राज्य में पुलिस और जेल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मानवाधिकार संगठनों ने इन मौतों पर गहरी चिंता जताते हुए प्रत्येक मामले की न्यायिक जांच की मांग की है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, कई मामलों को "आत्महत्या" या "चिकित्सकीय कारणों" से हुई मौत करार दिया गया है। लेकिन अधिकार समूहों का कहना है कि बिना स्वतंत्र और पारदर्शी जांच के इन दावों पर भरोसा नहीं किया जा सकता। उनका मानना है कि जब तक हर मामले की निष्पक्ष जांच नहीं होगी, तब तक पुलिस हिरासत में होने वाली ज्यादतियों और लापरवाहियों के लिए जिम्मेदारी तय नहीं हो पाएगी।
सिविल सोसाइटी संगठनों ने राज्य सरकार से आग्रह किया है कि हिरासत में मौत जैसे संवेदनशील मामलों में न केवल न्यायिक जांच सुनिश्चित की जाए, बल्कि पीड़ित परिवारों को उचित मुआवजा और न्याय भी दिलाया जाए। उन्होंने यह भी कहा कि हिरासत में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए पुलिस सुधार और निगरानी तंत्र को मजबूत करना आवश्यक है।
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विशेषज्ञों का कहना है कि हिरासत मौतें केवल एक राज्य की समस्या नहीं हैं, बल्कि पूरे देश के लिए गंभीर चिंता का विषय है। राजस्थान में सामने आए आंकड़े इस व्यापक समस्या की एक झलक मात्र है। इन मौतों को केवल आंकड़े मानना न्याय और मानवाधिकारों के साथ अन्याय होगा।
मानवाधिकार संगठनों का स्पष्ट संदेश है कि लोकतांत्रिक समाज में हिरासत मौतें अस्वीकार्य हैं और राज्य सरकार को जवाबदेही सुनिश्चित करनी ही होगी।
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