सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को पैकेज्ड खाद्य पदार्थों और पेयजल में कुछ कैंसरकारी रसायनों की अनुमेय सीमा तय करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों को अपनाने की मांग वाली जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया। अदालत ने इस याचिका को “अमीरों का शहरी भय” करार देते हुए कड़ी टिप्पणी की।
यह याचिका भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा तय किए गए मानकों को चुनौती देती थी, जिनमें एंटीमनी और डीईएचपी (DEHP) जैसे रसायनों की सीमित मात्रा की अनुमति दी गई है। ये रसायन प्लास्टिक की पानी की बोतलों और खाद्य पैकेजिंग से रिसकर भोजन और पानी में मिल सकते हैं। याचिकाकर्ता ने मांग की थी कि FSSAI के मौजूदा मानकों को हटाकर WHO के मानकों को लागू किया जाए।
सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने याचिकाकर्ता को देश की जमीनी हकीकत समझने की सलाह दी। उन्होंने कहा, “उन्हें भारत के विभिन्न हिस्सों की यात्रा करने दीजिए, तब उन्हें समझ आएगा कि भारत क्या है। यहां आज भी लोगों को पीने का पानी उपलब्ध नहीं है।”
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महात्मा गांधी का उल्लेख करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि गांधी जी ने भारत आने के बाद गरीब इलाकों की यात्रा की थी। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता को भी उन क्षेत्रों में जाना चाहिए, जहां पानी तक पहुंच एक बड़ी चुनौती है, तभी देश की वास्तविक स्थिति का आकलन हो सकेगा।
याचिका में दलील दी गई थी कि एंटीमनी और डीईएचपी के लिए FSSAI द्वारा तय मानक कानून के खिलाफ हैं और खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 की धारा 18 के तहत अंतरराष्ट्रीय मानकों को ध्यान में रखना अनिवार्य है।
एंटीमनी, यदि पानी या व्यावसायिक खाद्य पदार्थों में पाई जाए, तो यह स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन सकती है। वहीं डीईएचपी एक रसायन है, जिसे प्लास्टिक को लचीला बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है और इसके संपर्क में आने से कैंसर का खतरा बढ़ सकता है तथा पुरुष प्रजनन प्रणाली को नुकसान हो सकता है।
याचिका में यह भी मांग की गई थी कि जब तक FSSAI और भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) अपने मानकों में संशोधन नहीं करते, तब तक WHO के मानकों को लागू किया जाए और जनता को इन रसायनों से होने वाले स्वास्थ्य जोखिमों की जानकारी दी जाए। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी मांगों को खारिज कर दिया।
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