बिहार विधानसभा चुनावों में वंशवाद की राजनीति का प्रभुत्व जारी है। भले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसे शीर्ष नेता वंशवाद के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं और इसे लोकतंत्र के लिए खतरा बता रहे हैं, लेकिन चुनावी राजनीति में पारिवारिक संबंधों का महत्व अब भी कम नहीं हुआ है।
वर्षों से चली आ रही यह परंपरा अब भी पार्टी टिकट वितरण में दिखाई दे रही है। अधिकांश प्रमुख राजनीतिक दल, जो चुनावी मुकाबले में शामिल हैं, अपने या गठबंधन के प्रभावशाली नेताओं के परिवारजनों को टिकट दे रहे हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि जनता की पसंद के बावजूद, राजनीतिक विरासत का दबदबा चुनावी राजनीति में बना हुआ है।
विशेष रूप से बिहार विधानसभा चुनाव से पहले, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की सदस्य पार्टियों और भारतीय राष्ट्रीय विकासशील समावेशी गठबंधन (INDIA) ब्लॉक के दलों ने अपने परिवारजनों को टिकट देकर अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की है। इस परंपरा के चलते नए और मँझे हुए नेताओं के लिए मौका सीमित हो जाता है और राजनीतिक संरचना में बदलाव लाने की संभावना कम हो जाती है।
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विशेषज्ञों का मानना है कि वंशवाद के चलते लोकतंत्र की जड़ों को नुकसान पहुंच सकता है। जनता की भागीदारी और उम्मीदवारों की योग्यता की तुलना में पारिवारिक संबंध चुनाव में ज्यादा महत्व रखने लगे हैं। यह बिहार की राजनीति में लंबे समय से चली आ रही एक चुनौती है और आगामी विधानसभा चुनाव में इसका असर और गहराएगा।
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