तमिलनाडु के तिरुची से लगभग 105 किलोमीटर दूर स्थित गंगईकोंडा चोलापुरम, जो कभी चोल साम्राज्य की समृद्धि और वैभव का प्रतीक था, आज बुनियादी ढांचे की कमी से जूझ रहा है। हर साल यहां ‘आदि तिरुवथिराई’ उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है, जो चोल सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम (1012–1044 ई.) की जयंती के उपलक्ष्य में आयोजित होता है।
चोल काल में यह स्थान प्रशासनिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र हुआ करता था। राजेंद्र चोल ने गंगईकोंडा चोलापुरम को राजधानी बनाया था और यहां भव्य मंदिरों तथा स्थापत्य कला का विकास हुआ। लेकिन समय के साथ इस ऐतिहासिक स्थल का महत्व घटता गया और आज यह मूलभूत सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रहा है।
स्थानीय लोगों और इतिहासकारों का कहना है कि इस विरासत स्थल को पुनर्जीवित करने के लिए केवल मूर्तियां लगाने से समस्या हल नहीं होगी। यहां पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए सड़क, पानी, स्वच्छता और सुरक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
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हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चोल राजाओं की स्मृति में मूर्तियां लगाने की घोषणा की थी, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि स्थायी समाधान के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार आवश्यक है। गंगईकोंडा चोलापुरम की ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करना और इसे पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करना स्थानीय अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक संरक्षण के लिए अहम है।
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