हिमाचल प्रदेश ने पड़ोसी राज्यों की तुलना में विधानसभा सत्र बुलाने और चलाने में बेहतर प्रदर्शन किया है। राज्य में विधानसभा सत्र की संख्या और उनके संचालन की नियमितता ने इसे क्षेत्र के अन्य राज्यों की तुलना में अग्रणी बना दिया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि सभी तीन राज्यों में विधानसभा सत्र की ‘कम अवधि’ अक्सर सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच विवाद का कारण बनती है। कम दिनों के सत्र और विधेयकों की शीघ्र स्वीकृति आमतौर पर यह संकेत देती है कि प्रक्रियाएं जल्दबाजी में पूरी की जा रही हैं, जिससे विधेयकों पर गहन समीक्षा और विचार-विमर्श का अवसर सीमित रह जाता है।
हिमाचल प्रदेश में यह स्थिति अलग रही है। यहां विधानसभा सत्रों की अवधि और नियमितता ने पारदर्शिता और प्रभावी नीति निर्माण में मदद की है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह अभ्यास राज्य सरकार और विधायक दोनों के लिए बेहतर संवाद और कानून निर्माण की गुणवत्ता सुनिश्चित करता है।
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राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि कम अवधि वाले सत्रों में विपक्ष के लिए अपने विचार व्यक्त करना और विधेयकों की समीक्षा करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इसके विपरीत, हिमाचल प्रदेश ने अपने विधानसभा सत्रों को समयबद्ध और व्यवस्थित तरीके से आयोजित करके राज्य नीति निर्माण की प्रक्रिया को अधिक मजबूत और संतुलित बनाया है।
राज्य प्रशासन ने भी यह सुनिश्चित किया है कि सत्रों में सभी महत्वपूर्ण मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हो और कानूनों का निर्माण गहन अध्ययन और विचार-विमर्श के बाद ही किया जाए। इससे न केवल नीति की गुणवत्ता बढ़ी है बल्कि जनप्रतिनिधियों और नागरिकों के बीच विश्वास भी मजबूत हुआ है।
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