भारत सरकार गैस उत्पादन से जुड़े एक मध्यस्थता (आर्बिट्रेशन) मामले में रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) और उसकी साझेदार कंपनी बीपी (BP) से 30 अरब डॉलर से अधिक के मुआवजे की मांग कर रही है। इस विवाद से जुड़े मामलों की सुनवाई वर्ष 2016 से भारत में एक तीन सदस्यीय न्यायाधिकरण द्वारा की जा रही है। अंतिम दलीलें 7 नवंबर को पूरी हो चुकी हैं और न्यायाधिकरण का फैसला मध्य-2026 तक आने की संभावना है।
यह विवाद कृष्णा-गोदावरी बेसिन के डी6 ब्लॉक में स्थित डी1 और डी3 गहरे समुद्री गैस क्षेत्रों से जुड़ा है। ये भारत की पहली बड़ी डीपवॉटर गैस परियोजनाएं थीं, जिन्हें देश की ऊर्जा आत्मनिर्भरता के लिए बेहद अहम माना गया था। हालांकि, जल प्रवेश, रिजर्वायर दबाव और लागत वसूली से जुड़े विवादों के कारण यह परियोजना अपेक्षित उत्पादन नहीं दे सकी।
सरकार का आरोप है कि रिलायंस और बीपी की कथित कुप्रबंधन के कारण डी1 और डी3 क्षेत्रों के अधिकांश गैस भंडार नष्ट हो गए। सरकार का कहना है कि शुरुआत में इन क्षेत्रों से करीब 10 ट्रिलियन क्यूबिक फीट गैस निकलने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन वास्तविक उत्पादन इसका केवल लगभग 20 प्रतिशत ही रहा। सरकार का दावा है कि इस कमी की भरपाई कंपनियों को करनी चाहिए।
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मध्यस्थता के दौरान सरकार ने यह भी आरोप लगाया कि रिलायंस ने 31 कुओं की योजना के मुकाबले केवल 18 कुओं से अत्यधिक आक्रामक तरीके से गैस निकाली, जिससे रिजर्वायर को नुकसान पहुंचा। सरकार का कहना है कि इस गलत प्रबंधन के कारण संसाधनों की भारी क्षति हुई।
हालांकि, रिलायंस इंडस्ट्रीज ने रॉयटर्स की रिपोर्ट को सिरे से खारिज करते हुए इसे “तथ्यात्मक रूप से गलत और गैर-जिम्मेदाराना” बताया है। कंपनी ने स्पष्ट किया कि सरकार का दावा 30 अरब डॉलर का नहीं, बल्कि लगभग 247 मिलियन डॉलर का है, जिसे उसके ऑडिटेड वित्तीय बयानों में पहले ही उजागर किया जा चुका है।
यदि 30 अरब डॉलर का दावा स्वीकार किया जाता है, तो यह किसी भी निजी कंपनी के खिलाफ भारत सरकार द्वारा किया गया अब तक का सबसे बड़ा दावा होगा।
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