भारत अपने सैन्य और वैश्विक शांति अभियानों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है। भारतीय सेना द्वारा पहली बार क्षेत्रीय सेना (Territorial Army) में महिला सैनिकों की भर्ती की योजना इसी परिवर्तनकारी प्रयास का हिस्सा है। यह कदम उन घटनाक्रमों के बीच उठाया जा रहा है, जिनमें भारत वैश्विक स्तर पर महिलाओं की सुरक्षा, शांति और संघर्ष समाधान में बढ़ती भूमिका को आगे बढ़ा रहा है।
इस वर्ष भारत ने पहली बार महिला शांति रक्षकों पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें भारत सहित वैश्विक दक्षिण के 36 देशों की महिला शांति सैनिकों ने भाग लिया। यह आयोजन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1325 की 25वीं वर्षगांठ के अवसर पर हुआ, जो शांति स्थापना, मानवीय सहायता, संघर्ष रोकथाम और पुनर्निर्माण में महिलाओं की समान भागीदारी को रेखांकित करता है।
भारत, जो संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सबसे बड़े योगदानकर्ताओं में से एक है, ने 1953 में कोरिया में चिकित्सा दल भेजकर इस भूमिका की शुरुआत की। 1960 के दशक में भारतीय महिला चिकित्सकों को कांगो भेजा गया। परंतु 2007 में भारत ने विश्व का पहला ऑल-वुमन फॉर्म्ड पुलिस यूनिट (FPU) लाइबेरिया भेजकर ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज की। आज 150 से अधिक भारतीय महिला सैनिक छह महत्वपूर्ण मिशनों में सेवारत हैं। हाल ही में सूडान के अबेई क्षेत्र में महिला प्लाटून भेजी गई है, जो लाइबेरिया के बाद सबसे बड़ी तैनाती है।
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अशोक, बौद्ध-जैन परंपराओं और गांधीवाद की अहिंसक नीति से प्रेरित भारत की शांति स्थापना की विरासत संवाद और सहयोग पर आधारित है। दिल्ली स्थित CUNPK विशेष रूप से महिला शांति सैनिकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करता है। मेजर राधिका सेन को 2023 में UN Military Gender Advocate Award मिला, जिससे भारत की प्रतिबद्धता का प्रमाण मिलता है।
अध्ययनों में पाया गया है कि महिला शांति सैनिक स्थानीय समुदायों से बेहतर संवाद स्थापित करती हैं, संवेदनशील क्षेत्रों तक पहुंच बनाती हैं और हिंसा की घटनाओं की रिपोर्टिंग में महिलाओं का विश्वास बढ़ाती हैं। उनकी भागीदारी मिशन की सफलता और सामाजिक परिवर्तन दोनों में अहम भूमिका निभाती है।
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