पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, जिन्होंने हाल ही में अपने पद से इस्तीफा दिया, सरकार के साथ अपनी भूमिका को लेकर नाखुश थे। सूत्रों के अनुसार, श्री धनखड़ को ऐसा महसूस हुआ कि उन्हें उनके पूर्ववर्तियों की तुलना में सीमित जिम्मेदारियां दी गईं। विशेष रूप से, उन्हें विदेश मंत्रालय (MEA) द्वारा दी जाने वाली भूमिकाओं और विदेश यात्राओं में कटौती को लेकर गहरी असंतोष था।
बताया जा रहा है कि श्री धनखड़ विदेश यात्राओं में कमी और कई प्रोटोकॉल उल्लंघनों से नाराज़ थे। उन्हें लगता था कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का प्रतिनिधित्व करने के पर्याप्त अवसर नहीं मिल रहे थे, जबकि उनके पूर्ववर्ती उपराष्ट्रपतियों को इस क्षेत्र में अधिक सक्रिय भूमिका दी गई थी।
सूत्रों का कहना है कि विदेश मंत्रालय और उपराष्ट्रपति कार्यालय के बीच तालमेल की कमी ने उनके असंतोष को और बढ़ा दिया। कई बार कार्यक्रमों में उन्हें उचित सम्मान और प्राथमिकता नहीं दी गई, जिससे उनकी भूमिका औपचारिक और सीमित होकर रह गई।
श्री धनखड़ ने यह भी महसूस किया कि नीति निर्धारण या विदेश नीति पर संवाद में उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया। उनका मानना था कि उपराष्ट्रपति पद का गरिमा बनाए रखना केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि सक्रिय भूमिका की मांग करता है।
इन मतभेदों और उपेक्षा की भावना ने अंततः उनके इस्तीफे के फैसले को प्रभावित किया। हालांकि सरकार की ओर से अभी तक इस पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी गई है।