पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने जम्मू-कश्मीर के प्रवासी मजदूरों के सरकारी क्वार्टरों से निकाले जाने के मामले में निकासी आदेश को बरकरार रखा है, लेकिन चंडीगढ़ प्रशासन को पुनर्वास नीति (rehabilitation policy) बनाने के निर्देश दिए हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि निकासी के दौरान मानवता और संवेदनशीलता का ध्यान रखा जाए।
न्यायालय ने सरकारी क्वार्टरों से निकाले जाने वाले कर्मचारियों को मार्च 2026 तक का समय दिया है, ताकि उनके लिए वैकल्पिक व्यवस्था सुनिश्चित की जा सके। अदालत ने इस मामले में यह भी कहा कि लंबे समय से वहां रहने वाले निवासियों के हितों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लिया जाए।
उच्च न्यायालय का यह आदेश प्रवासी मजदूरों और उनके परिवारों के लिए राहत की भावना रखते हुए निकासी प्रक्रिया को न्यायसंगत और संगठित बनाने का प्रयास है। अदालत ने यह भी जोर दिया कि प्रशासन को समग्र और सुविचारित पुनर्वास नीति तैयार करनी चाहिए, ताकि निकाले गए व्यक्तियों को स्थायी और सुरक्षित आवास मिल सके।
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विशेषज्ञों के अनुसार, यह फैसला प्रशासनिक और कानूनी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे सरकारी क्वार्टरों के उपयोग और प्रवासी कर्मचारियों के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित होगा। अदालत की यह हिदायत मानवता और संवेदनशील दृष्टिकोण को प्राथमिकता देती है, जबकि सरकार को अपनी भूमि और क्वार्टरों का प्रबंधन करने का अधिकार भी देता है।
इस फैसले से यह संदेश जाता है कि कानून और मानवाधिकार दोनों का सम्मान करना संभव है, और प्रवासी मजदूरों के पुनर्वास के लिए ठोस योजना तैयार करने की आवश्यकता है।
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