देशभर के पत्रकार संगठनों ने 'द वायर' के संपादकों सिद्धार्थ वरदराजन और वरिष्ठ पत्रकार करन थापर पर लगाए गए राजद्रोह के आरोपों की कड़ी निंदा की है। इन संगठनों ने आरोप लगाया कि असम पुलिस ने क्राइम ब्रांच के माध्यम से पत्रकारों के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण कार्रवाई की है।
पत्रकार संगठनों का कहना है कि यह कदम प्रेस की स्वतंत्रता को दबाने का प्रयास है और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ जाता है। उनका आरोप है कि राज्य की एजेंसियां सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों को डराने-धमकाने के लिए कानून का दुरुपयोग कर रही हैं।
संगठनों ने स्पष्ट किया कि आलोचनात्मक रिपोर्टिंग को देशद्रोह जैसा गंभीर अपराध बताना खतरनाक प्रवृत्ति है, जो पत्रकारिता के मौलिक अधिकारों को कमजोर करता है। पत्रकारों के मुताबिक, यह कार्रवाई न केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है, बल्कि लोकतांत्रिक ढांचे को भी कमजोर करती है।
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पत्रकार संघों ने केंद्र और राज्य सरकारों से अपील की कि वे इस तरह के मामलों में हस्तक्षेप करें और पत्रकारों के खिलाफ दमनकारी कार्रवाई रोकी जाए। उन्होंने मांग की कि राजद्रोह जैसे औपनिवेशिक कानून का दुरुपयोग बंद हो और इसे समाप्त करने पर विचार किया जाए।
उन्होंने यह भी चेताया कि अगर ऐसे कदम जारी रहे तो स्वतंत्र पत्रकारिता गंभीर संकट में पड़ जाएगी और जनता तक सच पहुंचना मुश्किल हो जाएगा।
विश्लेषकों का मानना है कि इस घटना ने फिर से यह बहस छेड़ दी है कि क्या राजद्रोह कानून का उपयोग केवल असहमति की आवाज दबाने के लिए किया जा रहा है।
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