इस साल कोलकाता के दुर्गा पूजा पंडाल केवल कला और भव्यता के लिए ही नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक संदेशों के लिए भी चर्चा में हैं। इस बार कई पंडालों ने अपनी थीम के रूप में ‘बांग्ला अस्मिता’ (Bengali Pride) को चुना है। यह कदम ऐसे समय पर उठाया गया है जब बंगाली भाषा, पहचान और प्रवासी मज़दूरों के संकट को लेकर विवाद और चर्चाएं तेज़ हैं।
पंडालों की सजावट और कला में बंगाली परंपरा, साहित्य और सांस्कृतिक धरोहर को विशेष स्थान दिया गया है। आयोजकों का कहना है कि दुर्गा पूजा केवल धार्मिक उत्सव नहीं बल्कि समाज की भावनाओं और मुद्दों को अभिव्यक्त करने का एक माध्यम भी है। इस बार का संदेश साफ है—बंगाली संस्कृति और पहचान पर गर्व करना और उसे संरक्षित रखना।
कई पंडालों में जूट, मिट्टी और बांस जैसे स्थानीय संसाधनों का उपयोग किया गया है, ताकि पारंपरिक जीवनशैली और हस्तकला को उजागर किया जा सके। साथ ही, प्रवासी मज़दूरों की पीड़ा और बंगाली भाषा के महत्व को कला के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है।
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विशेषज्ञों का मानना है कि यह पहल बंगाली समाज के भीतर अस्मिता की भावना को मजबूत करने और युवाओं को अपनी जड़ों से जोड़ने का प्रयास है। वहीं, आगंतुकों ने भी इस संदेश को सराहते हुए कहा कि ऐसे पंडाल न केवल श्रद्धा बल्कि सामाजिक चेतना भी जगाते हैं।
कोलकाता की दुर्गा पूजा पहले से ही यूनेस्को की ‘इंटैन्जिबल हेरिटेज’ सूची में शामिल है, और इस बार की थीम इसे और भी प्रासंगिक और वैश्विक स्तर पर आकर्षक बनाती है।
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