बिहार की कोसी नदी को अक्सर राज्य की ‘वेदना’ कहा जाता है क्योंकि इसके बार-बार आने वाले बाढ़ ने लाखों लोगों का जीवन प्रभावित किया है। लेकिन राजनीतिक दृष्टि से देखें तो यह इलाका जेडीयू और उसके सहयोगियों के लिए चुनावी जीवनरेखा साबित होता आया है।
2020 के विधानसभा चुनावों में कोसी नदी के किनारे स्थित 12 विधानसभा क्षेत्र निर्णायक साबित हुए थे। इन क्षेत्रों में अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) के मतदाताओं ने बड़ी संख्या में एनडीए उम्मीदवारों का समर्थन किया था। इसने सत्तारूढ़ गठबंधन को विपक्ष की कड़ी चुनौती से पार पाने में मदद की।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कोसी बेल्ट में ईबीसी मतदाता चुनावी परिणाम तय करने में सबसे अहम भूमिका निभाते हैं। इस वर्ग के लोगों का झुकाव जेडीयू की ओर इसलिए रहा है क्योंकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वर्षों से इस समुदाय को राजनीतिक प्रतिनिधित्व और सामाजिक-आर्थिक सुविधाएँ दिलाने की कोशिश की है।
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हालांकि, विपक्ष लगातार यह मुद्दा उठाता रहा है कि कोसी क्षेत्र के लोग अब भी बाढ़, पलायन और बेरोजगारी जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं। इसके बावजूद, जेडीयू और सहयोगी दल इस इलाके को अपने पारंपरिक वोट बैंक के तौर पर देखते हैं और इस बार भी उसी रणनीति पर भरोसा कर रहे हैं।
चुनावी समीकरणों को देखते हुए कहा जा रहा है कि अगर कोसी बेल्ट में ईबीसी मतदाताओं का समर्थन जेडीयू को दोहराया गया, तो यह गठबंधन को 2025 के चुनाव में भी मजबूत स्थिति में पहुँचा सकता है।
इस तरह, कोसी नदी जहाँ एक ओर बिहार की दर्दभरी पहचान है, वहीं दूसरी ओर यह सियासत में अब भी सत्ता की चाबी बनी हुई है।
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