केंद्र सरकार द्वारा चार श्रम संहिताओं को लागू करने के निर्णय का विभिन्न क्षेत्रों ने स्वागत किया गया है। श्रम विशेषज्ञों और उद्योग संगठनों का कहना है कि 29 मौजूदा श्रम कानूनों को सरल बनाकर इन चार संहिताओं में समाहित करना निश्चित रूप से एक बड़ा सुधार है, जिससे देश के श्रमिक वर्ग को अधिक सुरक्षा और स्पष्टता मिलेगी।
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि अब सरकार का ध्यान इन संहिताओं के प्रभावी क्रियान्वयन पर होना चाहिए, क्योंकि कई प्रारंभिक चुनौतियाँ सामने आ सकती हैं। विशेष रूप से छोटे और मध्यम उद्यमों (SMEs) तथा सेवा क्षेत्र पर इन नए नियमों का पालन करने का अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है। छोटे उद्यमों में आवश्यक संसाधनों और प्रक्रियाओं की कमी के कारण नए प्रावधानों को लागू करना कठिन हो सकता है।
एक अन्य मुद्दा इन संहिताओं को ‘रातोंरात’ लागू करने से जुड़ा है। उद्योग संगठनों का कहना है कि इतने बड़े ढांचागत बदलावों के लिए व्यवसायों को समायोजन का पर्याप्त समय मिलना चाहिए। अचानक परिवर्तन से न केवल कंपनियों पर दबाव बढ़ेगा बल्कि श्रमिकों और प्रबंधन दोनों के बीच भ्रम भी उत्पन्न हो सकता है।
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विशेषज्ञों ने यह भी सुझाव दिया कि सरकार को शुरुआती वर्षों में अत्यधिक कठोरता अपनाने से बचना चाहिए। इसके बजाय, अनुपालन न कर पाने वाले संस्थानों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण, सहायक और चरणबद्ध दृष्टिकोण अपनाना अधिक उपयुक्त होगा। उनका मानना है कि अत्यधिक दंडात्मक रवैया छोटे उद्यमों के विकास को प्रभावित कर सकता है और रोजगार सृजन पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
इन सबके बावजूद, उद्योग जगत और श्रम नीति विशेषज्ञों का मानना है कि यह सुधार भारत के श्रम ढाँचे को सरल, आधुनिक और अधिक समावेशी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। यदि सरकार संभावित शुरुआती समस्याओं को समय रहते हल कर लेती है, तो ये संहिताएं देश के श्रमिक वर्ग को दीर्घकालिक लाभ प्रदान कर सकती हैं।
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