पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने देश में भाषाई सम्मान और समानता की आवश्यकता पर जोर दिया है। उन्होंने एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि वह ऐसे भारत की कामना करती हैं जो "भाषा के आतंक" से मुक्त होकर आगे बढ़े और फूले-फले।
ममता बनर्जी ने अपनी पोस्ट में लिखा, "मैं उस राष्ट्र के जागृत होने की प्रार्थना करती हूं, जहां गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर की भाषा, बांग्ला, को सम्मान, गरिमा और देशवासियों का प्यार मिले।" उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भाषाई विविधता भारत की असली ताकत है और हर भाषा को समान महत्व और पहचान मिलनी चाहिए।
मुख्यमंत्री ने इशारों-इशारों में केंद्र सरकार और कुछ संगठनों पर आरोप लगाया कि वे एक भाषा को थोपने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे क्षेत्रीय भाषाओं और उनकी सांस्कृतिक विरासत को नुकसान पहुंच सकता है। उन्होंने कहा कि भाषाई आतंक का मतलब है किसी पर ऐसी भाषा थोपना जिसे वह अपनी मातृभाषा के बजाय अपनाने के लिए मजबूर हो।
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ममता बनर्जी लंबे समय से बांग्ला भाषा और संस्कृति के संरक्षण और प्रसार की पैरोकार रही हैं। उन्होंने इससे पहले भी कई मौकों पर चेतावनी दी है कि अगर भाषाई विविधता को नष्ट किया गया तो यह देश की एकता और सांस्कृतिक धरोहर के लिए गंभीर खतरा होगा।
उनके इस बयान को राज्य में और देशभर में भाषा व सांस्कृतिक पहचान के मुद्दे पर जारी बहस के संदर्भ में देखा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह टिप्पणी आने वाले समय में राष्ट्रीय स्तर पर भाषाई नीति पर चर्चा को और तेज कर सकती है।
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