मुंबई के मलाड (पूर्व) के कुरार इलाके में 2017 में एक नाबालिग लड़की से यौन उत्पीड़न के आरोप में गिरफ्तार किए गए 56 वर्षीय व्यक्ति को आठ साल जेल में बिताने के बाद अदालत ने बरी कर दिया है। POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) की विशेष अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत सबूत “बहुत कम और अविश्वसनीय” हैं, जो आरोपी की दोषसिद्धि साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
विशेष अदालत की जज एन.डी. खोसे ने 28 नवंबर को अपने फैसले में कहा कि पीड़िता का बयान, जिसे मध्यम बौद्धिक अक्षमता से ग्रस्त बताया गया था, अन्य साक्ष्यों से मेल नहीं खाता। अदालत के अनुसार, पीड़िता ने यह स्पष्ट रूप से नहीं बताया कि वास्तव में उसके साथ क्या हुआ। इतना ही नहीं, मेडिकल साक्ष्य भी पीड़िता के बयान से बिल्कुल विपरीत पाए गए।
अभियोजन के अनुसार, 23 अगस्त 2017 को यह घटना तब हुई जब लड़की घर में अकेली थी। आरोपी, जो उसका पड़ोसी था, कथित रूप से घर में घुसा, उसका यौन शोषण किया और परिवार को धमकाया। अगले दिन लड़की की मां ने शिकायत दर्ज कराई और आरोपी को IPC और POCSO एक्ट के तहत गिरफ्तार कर लिया गया। उस समय लड़की की उम्र 17 वर्ष बताई गई थी।
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अदालत ने अपने निष्कर्ष में कहा कि अभियोजन यह सिद्ध करने में विफल रहा कि आरोपी ने जानबूझकर नाबालिग के साथ दुष्कर्म किया। अदालत ने आदेश दिया कि यदि आरोपी किसी अन्य मामले में वांछित नहीं है, तो उसे तुरंत रिहा किया जाए।
यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया में साक्ष्यों के महत्व को रेखांकित करता है, खासकर संवेदनशील मामलों में जहां पीड़ित की स्थिति और बयान दोनों गंभीर भूमिका निभाते हैं।
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