साल 2025 के अंत के साथ ही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष के बीच टकराव और तेज हो गया है। इसकी वजह केंद्र सरकार का वह फैसला है, जिसके तहत करीब दो दशक पुराने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को समाप्त कर उसकी जगह ‘विकसित भारत–गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)’ यानी VB–G Ram G अधिनियम लागू किया गया है।
मनरेगा अधिनियम, 2005 को तत्कालीन कांग्रेस की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने लागू किया था। इसके तहत देश के प्रत्येक ग्रामीण परिवार को साल में 100 दिन का अकुशल रोजगार कानूनी अधिकार के रूप में सुनिश्चित किया गया था। यह योजना लंबे समय से कांग्रेस और गांधी परिवार की राजनीति का एक अहम आधार रही है। विपक्ष के कड़े विरोध के बावजूद, संसद के शीतकालीन सत्र के अंतिम सप्ताह में सरकार ने मनरेगा को निरस्त कर नया G Ram G अधिनियम, 2025 पारित कर दिया।
नए कानून के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में अकुशल रोजगार की गारंटी को नए सिरे से परिभाषित किया गया है। सरकार का दावा है कि इस अधिनियम के माध्यम से ग्रामीण परिवारों को साल में 125 दिन तक काम उपलब्ध कराया जाएगा, जो मनरेगा के तहत मिलने वाले 100 दिनों से अधिक है। इसके साथ ही मजदूरी भुगतान, काम की प्रकृति और निगरानी तंत्र में भी बदलाव किए गए हैं, जिन्हें सरकार ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य से जोड़कर देख रही है।
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हालांकि, कांग्रेस ने इस कदम को गरीबों और ग्रामीणों के अधिकारों पर हमला करार दिया है। पार्टी को लगता है कि मनरेगा खत्म किए जाने का मुद्दा उसे एक बड़ा राजनीतिक अवसर दे सकता है। इसी को देखते हुए कांग्रेस इस फैसले के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन और जनसंपर्क अभियान की तैयारी में जुट गई है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि G Ram G कानून 2026 की राजनीति में एक बड़ा फ्लैशपॉइंट बन सकता है। एक ओर बीजेपी इसे सुधार और विकास के एजेंडे के रूप में पेश कर रही है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस और गांधी परिवार इसे सामाजिक सुरक्षा और अधिकारों की लड़ाई के रूप में जनता के बीच ले जाने की रणनीति बना रहे हैं।
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