मध्य प्रदेश के सतना जिले में थैलेसीमिया से पीड़ित पांच बच्चों में महीनों पहले एचआईवी संक्रमण की पुष्टि हो चुकी थी, लेकिन इसके बावजूद स्वास्थ्य तंत्र में कोई तात्कालिक चेतावनी या सख्त कार्रवाई देखने को नहीं मिली। अधिकारियों के अनुसार, इस गंभीर मामले में कई स्तरों पर लापरवाही और समन्वय की कमी सामने आई है।
एक परिवार उस समय स्तब्ध रह गया, जब उनकी 15 वर्षीय बेटी की रक्त जांच रिपोर्ट में एचआईवी पॉजिटिव पाया गया। बच्ची के पिता ने बताया, “दो-तीन महीने पहले डॉक्टरों ने कहा कि उसे एचआईवी है। मुझे यकीन नहीं हुआ, इसलिए दोबारा जांच कराई। रिपोर्ट फिर से पॉजिटिव आई तो मैं और मेरी पत्नी पूरी तरह टूट गए। हम दोनों एचआईवी पॉजिटिव नहीं हैं, हमें समझ ही नहीं आ रहा कि ऐसा कैसे हुआ।”
यह बच्ची उन पांच बच्चों में शामिल है, जिनमें मार्च और अप्रैल के बीच एचआईवी की पुष्टि हुई थी। ये सभी बच्चे थैलेसीमिया से पीड़ित थे और उन्हें सतना जिले के सरकारी और निजी अस्पतालों में रक्त चढ़ाया गया था।
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The Indian Witness ने इस मामले की जांच कर रही समिति के सदस्यों, राज्य और जिला स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों, एड्स नियंत्रण सोसायटी और ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल से बातचीत की। अधिकारियों ने स्वीकार किया कि यह मामला संचार तंत्र में गंभीर विफलता का उदाहरण है।
जांच में सामने आया कि संक्रमण की जानकारी समय पर लिखित रूप में दर्ज नहीं की गई। रिपोर्टिंग में महीनों की देरी हुई और जिन रक्तदाताओं से बच्चों को रक्त मिला था, उनकी अब तक पहचान नहीं हो सकी है। इसके अलावा, संबंधित एजेंसियों के बीच सूचना साझा करने में भी भारी चूक हुई।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि समय रहते इन मामलों को गंभीरता से लिया जाता और उचित प्रोटोकॉल का पालन किया जाता, तो न केवल अन्य बच्चों को जोखिम से बचाया जा सकता था, बल्कि दोषियों की पहचान भी संभव होती। यह मामला राज्य की रक्त आधान व्यवस्था और निगरानी प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है।
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