बिहार विधानसभा चुनावों के बीच, गया से लगभग 150 किलोमीटर दूर स्थित पथरा, हरहंज और केवालडीह गांवों के लोग इस बार एक ही नारा बुलंद कर रहे हैं — “पुल नहीं तो वोट नहीं”। पिछले 77 वर्षों से 8,000 से अधिक ग्रामीण अपनी एकमात्र मांग — मोरहर नदी पर पुल निर्माण — को लेकर संघर्ष कर रहे हैं।
स्थानीय महिला मतदाता कहती हैं, “हम तब तक वोट नहीं देंगे जब तक पुल नहीं बनेगा। हर साल नेता आते हैं, वादे करते हैं, लेकिन कोई पूरा नहीं करता।” बरसात के मौसम में नदी का जलस्तर कंधों तक पहुंच जाता है, जिससे ये गांव चार महीने तक पूरे राज्य से कट जाते हैं। इस दौरान बच्चों की पढ़ाई रुक जाती है, किसान अपनी फसल नहीं बेच पाते और बीमार लोग अस्पताल नहीं पहुंच पाते।
पथरा गांव के सुनील विश्वकर्मा की मौत इसी वजह से हुई। वे नदी किनारे इलाज के इंतजार में दम तोड़ बैठे क्योंकि नदी पार एंबुलेंस नहीं पहुंच सकी। उनकी मां ने बताया, “हमने निजी वाहन किराए पर लिया था, लेकिन वह भी नदी के दूसरी ओर फंसा रह गया।”
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ग्रामीणों के मुताबिक, हर मानसून में कम से कम दो लोगों की जान जाती है, खासकर गर्भवती महिलाओं को अस्पताल तक पहुंचाने में भारी मुश्किल होती है। गांव चारों ओर से नदी और जंगलों से घिरे हैं, जिससे जीवन बेहद कठिन बन गया है।
चुनावों में जहां नेता विकास, महिलाओं और युवाओं की बात कर रहे हैं, वहीं इन गांवों की एकमात्र मांग है — जीवित रहने के लिए एक पुल।
बिहार में मतदान दो चरणों में हो रहा है — पहला चरण 6 नवंबर को संपन्न हुआ और दूसरा चरण 11 नवंबर को होगा, जबकि परिणाम 14 नवंबर को घोषित किए जाएंगे।
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