क्या आप हवाई अड्डों, रेलवे स्टेशनों, कैफे या मॉल जैसी सार्वजनिक जगहों पर अपने फोन को चार्ज करते हैं? अगर हां, तो यह खबर आपके लिए बेहद अहम है। अक्सर यात्रा के दौरान ऐसा होता है कि मोबाइल की बैटरी अचानक तीन-चार प्रतिशत पर आ जाती है और फोन चार्ज करना मजबूरी बन जाता है। ऐसे में जैसे ही किसी सार्वजनिक जगह पर चार्जिंग प्वाइंट दिखता है, हम बिना ज्यादा सोचे-समझे फोन प्लग-इन कर देते हैं।
फोन चार्ज होते ही राहत महसूस होती है। जरूरी मैसेज का जवाब दिया जाता है, कॉल किए जाते हैं और हम इंतजार करने लगते हैं कि बैटरी कम से कम 20 प्रतिशत तक पहुंच जाए। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में एक बड़ा खतरा अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। सार्वजनिक USB चार्जिंग पोर्ट में फोन लगाना एक ऐसे साइबर अपराध का दरवाजा खोल सकता है, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।
इस खतरे को “जूस जैकिंग” कहा जाता है। इसमें हैकर सार्वजनिक चार्जिंग पोर्ट या केबल के जरिए आपके फोन में मैलवेयर डाल सकते हैं या आपके डिवाइस से निजी डेटा चुरा सकते हैं। जैसे ही आप USB पोर्ट से फोन जोड़ते हैं, डेटा ट्रांसफर की संभावना भी खुल जाती है। इसका फायदा उठाकर साइबर अपराधी आपकी निजी जानकारी, पासवर्ड, बैंकिंग डिटेल्स या फोटो तक एक्सेस कर सकते हैं।
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विशेषज्ञों का कहना है कि सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों से बचना ही सबसे सुरक्षित विकल्प है। यदि मजबूरी में चार्ज करना पड़े, तो केवल पावर बैंक का इस्तेमाल करें या अपने निजी चार्जर और सॉकेट का उपयोग करें। इसके अलावा, “चार्ज ओनली” केबल, USB डेटा ब्लॉकर और फोन में डेटा ट्रांसफर परमिशन को बंद रखना भी मददगार हो सकता है।
सावधानी और जागरूकता ही ऐसे साइबर खतरों से बचने का सबसे बड़ा उपाय है, खासकर तब जब आप यात्रा में हों और डिजिटल सुरक्षा से समझौता करने का जोखिम न उठा सकते हों।
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