सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सरकार द्वारा स्थानीय निकायों में OBC आरक्षण को 42% तक बढ़ाने के आदेश के खिलाफ याचिका पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने इस मामले में पूछा कि याचिकाकर्ता ने सीधे उच्चतम न्यायालय का रुख क्यों किया और पहले हाई कोर्ट में क्यों नहीं अपील की।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी इस बात पर जोर देती है कि सामान्य तौर पर राज्य सरकारों द्वारा लिए गए आरक्षण और प्रशासनिक फैसलों के खिलाफ पहली अपील संबंधित उच्च न्यायालय में ही की जानी चाहिए। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि संपूर्ण कानूनी प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है और सीधे सुप्रीम कोर्ट में जाना उचित नहीं था।
तेलंगाना सरकार ने पिछले कुछ समय में स्थानीय निकायों में OBC आरक्षण बढ़ाकर 42% करने का निर्णय लिया था, जिससे राज्य में पिछड़े वर्गों के लोगों को राजनीतिक और सामाजिक प्रतिनिधित्व बढ़ाने में मदद मिलेगी। हालांकि, इस आदेश के खिलाफ याचिका दायर की गई थी जिसमें दावा किया गया था कि आरक्षण बढ़ाने के कदम से अन्य वर्गों के अधिकार प्रभावित हो सकते हैं।
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सुप्रीम कोर्ट ने मामले में याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट में जाने और वहां से निर्देश लेने की सलाह दी। इस प्रकार, फिलहाल उच्चतम न्यायालय ने हस्तक्षेप से इनकार करते हुए मामले को याचिकाकर्ता के उच्च न्यायालय जाने तक के लिए टाल दिया।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह निर्णय कानूनी प्रक्रिया और याचिकाकर्ताओं को सही मार्गदर्शन का उदाहरण है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि राज्य सरकार के अधिकार और आरक्षण नीति पर विवादों को हल करने के लिए उच्च न्यायालय सबसे उपयुक्त मंच है।
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