सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (16 दिसंबर, 2025) को इंटरसेक्स बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा से जुड़ी एक अहम याचिका पर विस्तार से सुनवाई करने पर सहमति जताई और मामले को तीन-न्यायाधीशों की पीठ के पास भेज दिया। यह याचिका इंटरसेक्स अधिकार कार्यकर्ता गोपी शंकर मदुरै द्वारा दायर की गई है, जिसमें इंटरसेक्स शिशुओं पर उनकी सहमति के बिना किए जाने वाले लिंग-चयनात्मक और चिकित्सकीय शल्य उपचार (सर्जरी) पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गई है।
याचिका में यह भी आग्रह किया गया है कि इंटरसेक्स व्यक्तियों को सरकारी रिकॉर्ड और दस्तावेजों में स्पष्ट और समुचित पहचान दी जाए, ताकि उनके अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित हो सके। सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची के साथ कहा, “यह एक बहुत अच्छा और महत्वपूर्ण मुद्दा है। हम इसे सुनना चाहते हैं।”
मामले में इस बात पर विशेष जोर दिया गया कि न्यायपालिका और सरकार को ‘जैविक लिंग पहचान’ (सेक्स आइडेंटिटी) और ‘लैंगिक पहचान’ (जेंडर आइडेंटिटी) के बीच स्पष्ट अंतर करना चाहिए। याचिका में यह भी रेखांकित किया गया कि इंटरसेक्स व्यक्ति ट्रांसजेंडर नहीं होते और दोनों की पहचान, चुनौतियां तथा अधिकार अलग-अलग हैं।
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इंटरसेक्स बच्चे अक्सर जन्म के समय या बचपन में बिना उनकी सहमति के चिकित्सकीय हस्तक्षेप का सामना करते हैं, जिससे उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है। याचिकाकर्ता ने अदालत से आग्रह किया है कि ऐसे मामलों में बच्चों के सर्वोत्तम हित को प्राथमिकता दी जाए और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के अनुरूप दिशानिर्देश बनाए जाएं।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस याचिका को गंभीरता से लेने को इंटरसेक्स समुदाय के अधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। तीन-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा मामले की विस्तृत सुनवाई से उम्मीद है कि इंटरसेक्स बच्चों के संरक्षण, पहचान और गरिमा से जुड़े कानूनी ढांचे को और स्पष्टता मिलेगी।
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