सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस संजय कुमार ने कहा है कि धार्मिक उत्पीड़न और धर्मनिरपेक्षता से जुड़े मामलों में राज्य सरकार को स्पष्ट पारदर्शिता और निष्पक्षता दिखानी चाहिए। उन्होंने यह टिप्पणी महाराष्ट्र सरकार की उस याचिका को खारिज करते हुए की, जिसमें उसने 2023 के अकोला सांप्रदायिक दंगों की पृष्ठभूमि में गठित विशेष जांच दल (SIT) की जांच से संबंधित सितंबर के फैसले की पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी।
जस्टिस कुमार ने कहा कि भारत की धर्मनिरपेक्षता का अर्थ यह है कि राज्य सभी धर्मों के प्रति समान व्यवहार करे और किसी भी धर्म का पक्ष न ले। हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि शासन की मशीनरी चलाने वाले अधिकारी और कर्मचारी विभिन्न धर्मों और समुदायों से आते हैं। ऐसे में, कभी-कभी वे अपने व्यक्तिगत धार्मिक झुकावों या मान्यताओं से प्रभावित होकर निर्णय ले सकते हैं, जो धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों के विरुद्ध हो सकता है।
न्यायमूर्ति ने जोर दिया कि राज्य का यह दायित्व है कि वह ऐसे संवेदनशील मामलों में पूरी पारदर्शिता, निष्पक्षता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करे ताकि समाज के सभी वर्गों को न्याय मिलता हुआ दिखे। उन्होंने कहा कि "राज्य की निष्पक्षता केवल उसके शब्दों में नहीं, बल्कि उसके कार्यों में भी झलकनी चाहिए।"
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महाराष्ट्र सरकार ने अपनी पुनर्विचार याचिका में तर्क दिया था कि एसआईटी का गठन न्यायिक दायरे से बाहर है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया और कहा कि धार्मिक हिंसा जैसे मामलों में स्वतंत्र जांच जरूरी है ताकि न्याय पर जनता का विश्वास बना रहे।
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