अमेरिकी कांग्रेसनल कमीशन की एक वार्षिक रिपोर्ट में मात्र एक वाक्य ने भारत में तीखी प्रतिक्रियाएं उत्पन्न कर दी हैं। 675 पन्नों की रिपोर्ट में लिखा गया है कि “पाकिस्तान की भारत पर चार दिन की सैन्य सफलता ने चीनी हथियारों की क्षमता प्रदर्शित की।” यह टिप्पणी अमेरिकी इकोनॉमिक एंड सिक्योरिटी रिव्यू कमीशन (USCC) की है, जो चीन मामलों के विशेषज्ञों से बनी संस्था है और पिछले 25 वर्षों से सक्रिय है। इसलिए इसका भारत-पाक युद्ध का दृष्टिकोण चीन के संदर्भ में दिखना स्वाभाविक माना जा रहा है।
रिपोर्ट का वास्तविक फोकस पाकिस्तान-चीन के हथियार सहयोग पर है। इसमें फ्रांसीसी खुफिया स्रोतों का हवाला देते हुए दावा किया गया है कि चीन ने एआई के जरिए दुष्प्रचार अभियान चलाया और भारतीय राफेल के गिराए जाने की फर्जी तस्वीरें प्रसारित कीं, ताकि अपने J-35 लड़ाकू विमान को प्रमोट किया जा सके। रिपोर्ट ज्यादातर मीडिया स्रोतों पर आधारित है, और भारत की सीमित अंतरराष्ट्रीय मीडिया उपस्थिति के कारण ऐसी टिप्पणियाँ सामने आना आश्चर्यजनक नहीं है।
रिपोर्ट में भारत-पाक टिप्पणी से अधिक महत्वपूर्ण हैं चीन को लेकर की गई अमेरिकी सिफारिशें। USCC ने सुझाव दिया है कि चीन की आर्थिक और तकनीकी रणनीतियों का सामना करने के लिए अमेरिका को अपनी नीति और उपकरण मजबूत करने होंगे। विशेष रूप से, रिपोर्ट ने एक “आर्थिक स्टेटक्राफ्ट इकाई” स्थापित करने का प्रस्ताव दिया है, जो चीन द्वारा अमेरिकी निर्यात नियंत्रण और प्रतिबंधों को चकमा देने के प्रयासों पर रोक लगाएगी। यह इकाई वाणिज्य, वित्त, विदेश और रक्षा विभागों से जुड़े प्रमुख निर्यात नियंत्रण निकायों को एकीकृत करेगी।
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रिपोर्ट चीन-रूस सहयोग, रूस की अमेरिकी तकनीक तक पहुँच, और समुद्र के नीचे संचार केबलों की सुरक्षा पर भी विस्तृत सिफारिशें देती है। इसमें चीनी और रूसी जहाज़ों को केबल बिछाने और रखरखाव से रोकने तथा मित्र देशों के साथ मिलकर बहुराष्ट्रीय केबल मरम्मत बेड़ा विकसित करने का सुझाव शामिल है।
अंत में, रिपोर्ट अंतरिक्ष, सप्लाई चेन, ऊर्जा, बायोटेक और क्वांटम तकनीक में चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं से निपटने की आवश्यकता पर जोर देती है। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका के पास अब भी क्षमता है, लेकिन उसे सुसंगत चीन नीति तैयार कर साझेदार देशों, विशेषकर भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने की जरूरत है।
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