उत्तराखंड में एक शराब दुकान से जुड़ी शिकायत ने राज्य के दो महत्वपूर्ण विभागों — राजस्व विभाग और वन विभाग — को आमने-सामने खड़ा कर दिया है। मामला उस समय तूल पकड़ गया जब यह शिकायत सामने आई कि ऋषिकेश क्षेत्र में एक शराब दुकान आरक्षित वन भूमि पर संचालन कर रही है। शिकायत की जांच के बाद दोनों विभागों ने भूमि पर अपना-अपना दावा ठोक दिया, जिससे स्थिति और जटिल हो गई है।
वन विभाग ने पहली बार आधिकारिक रूप से स्वीकार किया है कि संबंधित भूमि आरक्षित वन क्षेत्र का हिस्सा है। अपने दावे को मजबूत करने के लिए विभाग ने 1935-36 के सर्वे ऑफ इंडिया के नक्शे का हवाला दिया है, जिसमें उस भूमि को स्पष्ट रूप से आरक्षित वन बताया गया है। वन विभाग का कहना है कि ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार यह वन भूमि है, ऐसे में यहां किसी प्रकार का व्यावसायिक संचालन अवैध माना जाएगा।
दूसरी ओर, राजस्व विभाग ने 1931 के राजस्व अभिलेखों को आधार बनाकर दावा किया है कि विवादित भूमि उसके अधिकार क्षेत्र में आती है। विभाग का कहना है कि राजस्व रिकॉर्ड में इस भूमि को गैर-वन क्षेत्र बताया गया है, इसलिए यहां शराब दुकान संचालित करने में कोई बाधा नहीं है।
और पढ़ें: कोर्बेट और राजाजी रिज़र्व में 7 साल बाद फिर से शुरू हुई हाथी सफारी
दोनों विभागों के परस्पर विरोधी दावों ने स्थानीय प्रशासन को भी असमंजस में डाल दिया है। जिला अधिकारी (DM) ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर तत्काल हस्तक्षेप और विवाद के समाधान की मांग की है। DM का कहना है कि दोनों विभागों के अभिलेखों में स्पष्ट विरोधाभास है, इसलिए राज्य स्तर पर निर्णय आवश्यक है, ताकि भविष्य में ऐसे विवादों को रोका जा सके।
यह मामला न केवल भूमि स्वामित्व के जटिल मुद्दों को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि सरकारी विभागों में समन्वय की कमी से प्रशासनिक व्यवस्था पर कितना प्रभाव पड़ सकता है।
और पढ़ें: म्यांमार में साइबर क्राइम के लिए युवाओं की तस्करी: उत्तराखंड में तीन एजेंट गिरफ्तार