केंद्र सरकार भारत में उच्च शिक्षा के नियामक ढांचे में व्यापक सुधार की योजना बना रही है। इसके तहत सरकार ने विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक, 2025 का मसौदा तैयार किया है, जिसे संसद के चालू शीतकालीन सत्र में पेश किया जाना प्रस्तावित है। इस विधेयक के माध्यम से उच्च शिक्षा से जुड़े मौजूदा नियामक संस्थानों की जगह एक नई ‘अम्ब्रेला’ व्यवस्था लागू की जाएगी।
विधेयक में 12 सदस्यीय विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान आयोग (VBSA) की स्थापना का प्रस्ताव है। इस आयोग के अंतर्गत तीन अलग-अलग परिषदें काम करेंगी—नियामक परिषद (विनियमन), प्रत्यायन परिषद (गुणवत्ता) और मानक परिषद (मानक)। इन परिषदों का उद्देश्य उच्च शिक्षा संस्थानों के संचालन, गुणवत्ता सुनिश्चित करने और शैक्षणिक मानकों को एकरूप बनाने का कार्य करना होगा।
सरकार का लक्ष्य विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC), अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) जैसी संस्थाओं के कार्यों को एकीकृत कर एक सरल और प्रभावी प्रणाली बनाना है। विधेयक के अनुसार, इन सभी संस्थाओं के नियामक और मानक निर्धारण संबंधी कार्य नई व्यवस्था के अंतर्गत समाहित कर दिए जाएंगे।
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हालांकि, UGC द्वारा विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों को अनुदान वितरण की भूमिका को पूरी तरह समाप्त नहीं किया जाएगा। इसके बजाय, अनुदान वितरण की जिम्मेदारी शिक्षा मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए विशेष तंत्रों के माध्यम से सुनिश्चित की जाएगी।
सरकार का मानना है कि इस प्रस्तावित बदलाव से उच्च शिक्षा व्यवस्था अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और समन्वित होगी। साथ ही, इससे शिक्षा क्षेत्र में दोहराव और जटिलताओं को कम कर ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य की दिशा में एक मजबूत आधार तैयार किया जा सकेगा।
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