पश्चिम बंगाल में मंगलवार को प्रकाशित ड्राफ्ट निर्वाचन सूची (ड्राफ्ट वोटर रोल) के अनुसार राज्य के कुल मतदाताओं की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है। पहले जहां राज्य में 7.66 करोड़ पंजीकृत मतदाता थे, वहीं नई ड्राफ्ट सूची में यह संख्या घटकर 7.08 करोड़ रह गई है। यानी करीब 58 लाख मतदाताओं के नाम सूची से हटा दिए गए हैं। निर्वाचन आयोग के अनुसार ये नाम मृत्यु, स्थायी रूप से अन्य स्थानों पर चले जाना, डुप्लीकेशन (एक से अधिक बार नाम दर्ज होना) और गणना फॉर्म जमा न करने जैसे कारणों से हटाए गए हैं।
ड्राफ्ट सूची के विश्लेषण से यह सामने आया है कि जिन विधानसभा क्षेत्रों में हिंदी भाषी मतदाताओं की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है, वे सबसे अधिक नाम कटने वाले शीर्ष 10 क्षेत्रों में शामिल हैं। इन सीटों पर मतदाता सूची से हटाए गए नाम कुल मतदाताओं के 15 प्रतिशत से लेकर 36 प्रतिशत तक बताए जा रहे हैं। इनमें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का विधानसभा क्षेत्र भवानीपुर और कोलकाता के मेयर फिरहाद हकीम का कोलकाता पोर्ट विधानसभा क्षेत्र भी शामिल है।
इसके उलट, कई मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्रों में मतदाता सूची से नाम हटाए जाने की संख्या बेहद कम रही है। यह असमानता राजनीतिक और सामाजिक हलकों में चर्चा का विषय बन गई है। हालांकि, चुनाव आयोग का कहना है कि यह सूची फिलहाल प्रारंभिक (प्रोविजनल) है और दावे व आपत्तियों के अगले चरण के बाद इसमें संशोधन संभव है।
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राज्य में राजनीतिक दलों ने मतदाता सूची में इस बड़े बदलाव पर नजर बनाए रखी है। विपक्षी दलों का आरोप है कि हिंदी भाषी और प्रवासी मतदाताओं के नाम disproportionately हटाए गए हैं, जबकि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का कहना है कि यह पूरी तरह से नियमों के अनुसार की गई प्रशासनिक प्रक्रिया है।
आयोग ने मतदाताओं से अपील की है कि जिनके नाम गलती से हट गए हैं, वे तय समयसीमा के भीतर दावा और आपत्ति प्रक्रिया के तहत आवेदन कर सकते हैं, ताकि अंतिम मतदाता सूची में उनका नाम शामिल किया जा सके।
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