केरल में हाल ही में हुए स्थानीय निकाय चुनावों के बाद बदले राजनीतिक समीकरणों के बीच भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी सीपीआई(एम) ने स्पष्ट कर दिया है कि वह भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस के साथ किसी तरह की “समझ” या गठजोड़ नहीं करेगी। यह फैसला ऐसे समय आया है जब स्थानीय निकाय चुनाव परिणामों में मिले-जुले नतीजे सामने आए हैं और कई नगर निकायों में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है।
सोमवार को पार्टी नेतृत्व ने कहा कि केरल की राजनीति में कांग्रेस और माकपा परंपरागत रूप से एक-दूसरे के कट्टर प्रतिद्वंद्वी रहे हैं और स्थानीय स्तर पर कांग्रेस के साथ तालमेल की कोई गुंजाइश नहीं है। हालांकि, राष्ट्रीय स्तर पर दोनों दल INDIA गठबंधन का हिस्सा हैं, लेकिन राज्य की राजनीति में उनके रास्ते अलग-अलग हैं।
चुनाव नतीजों के बाद बीजेपी की स्थिति कई जगहों पर मजबूत होकर उभरी है। राजधानी तिरुवनंतपुरम नगर निगम और पालक्काड नगरपालिका में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई है, जिससे राज्य की राजनीति में नई चुनौतियां पैदा हो गई हैं। उदाहरण के तौर पर, 53 सदस्यीय पालक्काड नगर परिषद में बीजेपी के 25 पार्षद हैं, जबकि माकपा के 8 और कांग्रेस के 17 पार्षद मिलकर भी वही संख्या बनाते हैं। इसके अलावा तीन निर्दलीय सदस्य भी हैं, जिनकी भूमिका अहम हो सकती है।
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राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि माकपा और कांग्रेस साथ आते, तो बीजेपी को सत्ता से दूर रखा जा सकता था, लेकिन माकपा के इस फैसले से यह साफ हो गया है कि पार्टी वैचारिक और राजनीतिक विरोध को दरकिनार कर कोई समझौता नहीं करना चाहती।
इस घटनाक्रम से केरल में त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति और मजबूत होती दिख रही है, जहां बीजेपी धीरे-धीरे अपनी पकड़ बढ़ा रही है, जबकि पारंपरिक रूप से वाम और कांग्रेस के बीच ही मुख्य मुकाबला रहा है।
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