तुर्की और अर्मेनिया के बीच संबंध सामान्य करने की कोशिशों के बीच पोप लियो XIV ने रविवार (30 नवंबर 2025) को इस्तांबुल स्थित अर्मेनियाई अपोस्टोलिक कैथेड्रल में विशेष प्रार्थना सभा की। यह उनके पहले विदेश दौरे का हिस्सा था, जिसमें वे नाइसिया काउंसिल की 1,700वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में तुर्की पहुंचे थे।
इस प्रार्थना सभा को ईसाई एकता और तुर्की में मौजूद ईसाई अल्पसंख्यकों के समर्थन के रूप में देखा जा रहा है। विश्लेषकों के अनुसार, यह दौरा अर्मेनिया और तुर्की के बीच सदियों पुराने दर्द और अविश्वास को कम करने के प्रयासों को भी शांत तरीके से बल देता है।
1915 में ओटोमन तुर्की में हुए नरसंहार में करीब 15 लाख अर्मेनियाई मारे गए थे, जिसे अधिकांश इतिहासकार जनसंहार मानते हैं। तुर्की इस शब्द को मानने से इनकार करता है और मौतों को नागरिक संघर्ष का परिणाम बताता है।
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पूर्व पोप फ्रांसिस ने 2014 और 2015 में इस मुद्दे पर खुलकर बयान दिया था, जिससे अंकारा नाराज हो गया था। हालांकि पोप लियो XIV अपने पहले छह महीनों में विवादों से दूर रहे हैं और उन्होंने केवल अर्मेनियाई समुदाय के “साहसी ईसाई योगदान” का जिक्र किया।
विशेषज्ञ रिचर्ड गिरागोसियन के अनुसार, यह दौरा वेटिकन और अर्मेनियाई चर्च के बीच संबंध मजबूत करने के साथ-साथ अर्मेनिया–तुर्की संबंधों में प्रगति को भी बढ़ावा देता है।
तुर्की और अर्मेनिया के बीच सीमाएं 1990 के दशक से बंद हैं, लेकिन 2021 से दोनों देशों ने विशेष दूत नियुक्त कर वार्ता शुरू की है। यह प्रक्रिया अर्मेनिया–अज़रबैजान तनाव कम करने के समानांतर आगे बढ़ रही है।
हालांकि पोप से जनसंहार की औपचारिक मान्यता की उम्मीद नहीं की जा रही है, स्थानीय अर्मेनियाई समुदाय का मानना है कि आज रिश्तों को आगे बढ़ाना अधिक महत्वपूर्ण है।
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