तृणमूल कांग्रेस की राज्यसभा सांसद सागरिका घोष ने गुरुवार को संसद में शून्यकाल के दौरान शहरी प्रवासी मजदूरों की स्थिति का मुद्दा उठाया, विशेषकर उन लोगों का जो बांग्ला भाषा बोलते हैं। उन्होंने सवाल किया कि क्या शहरी क्षेत्रों में बांग्ला भाषी नागरिकों को “घुसपैठिया” कहना किसी राजनीतिक उद्देश्य से प्रेरित है।
उन्होंने कहा कि देश के कई शहरों में बांग्ला बोलने वाले प्रवासी मजदूरों को संदिग्ध या बाहरी मानकर परेशान किया जा रहा है। घोष ने इस संदर्भ में सुनेली खातून का दर्दनाक मामला भी पेश किया। सुनेली खातून एक गर्भवती प्रवासी मजदूर थीं, जिन्हें जून में दिल्ली के रोहिणी इलाके से पुलिस ने उनके पति दानिश शेख और आठ वर्षीय बेटे के साथ उठाया था। सांसद के अनुसार, दिल्ली पुलिस ने बिना पर्याप्त जांच और दस्तावेजों की पुष्टि किए उन्हें “अवैध घुसपैठिया” मानते हुए सीमा पार बांग्लादेश भेज दिया।
सागरिका घोष ने कहा कि यह मामला न सिर्फ मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि गरीब और असहाय प्रवासी मजदूरों के साथ होने वाले व्यवहार की एक गंभीर मिसाल भी है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या भारतीय नागरिकों को केवल उनकी भाषा के आधार पर घुसपैठिया बताना राजनीतिक ध्रुवीकरण पैदा करने का प्रयास है।
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घोष ने कहा कि बंगाल और पूर्वोत्तर के लाखों मजदूर पूरे देश की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान देते हैं। ऐसे लोगों को बिना जांच-परख सीमा पार भेज देना, उनके परिवारों को तोड़ देना और उन्हें अपराधी की तरह ट्रीट करना बेहद चिंताजनक है।
उन्होंने केंद्र सरकार से स्पष्ट नीति और दिशानिर्देश बनाने की मांग की, ताकि शहरी क्षेत्रों में प्रवासी मजदूरों को भाषा, क्षेत्र या जातीय पहचान के आधार पर भेदभाव का शिकार न होना पड़े।
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