अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) ने शुक्रवार को इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) क्लबों के सामने घरेलू फुटबॉल को लंबे समय तक स्थिर और मजबूत बनाने के उद्देश्य से एक 20 वर्षीय योजना प्रस्तुत की। इस प्रस्ताव के अनुसार, देश की शीर्ष फुटबॉल लीग का स्वामित्व और संचालन सीधे एआईएफएफ के पास होगा। लीग का सत्र जून से मई के बीच आयोजित किया जाएगा, जिससे यह अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल कैलेंडर के अनुरूप हो सके।
एआईएफएफ की इस योजना में यह भी प्रस्ताव रखा गया है कि लीग से होने वाली केंद्रीय आय का 50 प्रतिशत हिस्सा सभी भाग लेने वाले क्लबों में समान रूप से बांटा जाएगा। इसके अलावा, प्रत्येक क्लब को लीग में भाग लेने के लिए लगभग ₹1 करोड़ का भागीदारी शुल्क देना होगा। प्रस्ताव में पदोन्नति और अवनति (प्रमोशन और रेलिगेशन) की व्यवस्था को भी शामिल किया गया है, ताकि प्रतिस्पर्धा बढ़े और निचले स्तर की टीमों को शीर्ष लीग तक पहुंचने का अवसर मिल सके।
यह प्रस्ताव ऐसे समय में सामने आया है, जब कुछ दिन पहले ही एआईएफएफ ने क्लबों द्वारा पेश की गई उस योजना को खारिज कर दिया था, जिसमें क्लब खुद लीग के मालिक बनने की सिफारिश कर रहे थे। नई पहल उस समिति की बैठक के बाद आई है, जिसे भारत में ठप पड़े घरेलू फुटबॉल सत्र को फिर से शुरू करने का समाधान निकालने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इस समिति में एआईएफएफ और आईएसएल क्लबों के अधिकारी शामिल थे।
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हालांकि, क्लबों के बीच इस योजना को लेकर कई सवाल और चिंताएं भी बनी हुई हैं। खासतौर पर बढ़ती लागत, खिलाड़ियों के वेतन पर सीमा (सैलरी कैप) और वित्तीय स्थिरता जैसे मुद्दों पर चर्चा जारी है। अब क्लब इस प्रस्ताव पर आंतरिक रूप से विचार करेंगे और उसके बाद एआईएफएफ को अपनी राय और सुझाव देंगे।
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