भारत ने अपने पहले स्वदेशी क्वांटम डायमंड माइक्रोस्कोप (QDM) का सफल विकास किया है, जो गतिशील चुंबकीय क्षेत्रों की इमेजिंग के लिए एक क्रांतिकारी तकनीक साबित होगी। यह उपलब्धि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के नेशनल क्वांटम मिशन (NQM) के तहत आईआईटी बॉम्बे के पी-क्वेस्ट समूह द्वारा हासिल की गई है। इस घोषणा को “एमर्जिंग साइंस टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन कॉन्क्लेव (ESTIC 2025)” में किया गया।
इस अवसर पर केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह, प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. अजय के. सूद, और डीएसटी सचिव प्रो. अभय करंदीकर उपस्थित रहे।
प्रोफेसर कस्तूरी साहा के नेतृत्व में विकसित यह माइक्रोस्कोप नाइट्रोजन-वैकेंसी (NV) सेंटर तकनीक पर आधारित है। ये हीरे में मौजूद परमाणु-स्तरीय दोष होते हैं, जो कमरे के तापमान पर भी क्वांटम गुणों को बनाए रखते हैं। ये सेंटर चुंबकीय, विद्युत और तापीय परिवर्तनों के प्रति अत्यंत संवेदनशील होते हैं और ऑप्टिकली डिटेक्टेड मैग्नेटिक रेजोनेंस (ODMR) प्रक्रिया के माध्यम से स्थानीय चुंबकीय क्षेत्रों की ऑप्टिकल रीडिंग सक्षम करते हैं।
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यह तकनीक नैनोस्तर पर त्रि-आयामी (3D) चुंबकीय क्षेत्र इमेजिंग की सुविधा देती है, जिससे गतिशील चुंबकीय गतिविधियों का दृश्यीकरण संभव होता है। इसका उपयोग न्यूरोसाइंस, सामग्री अनुसंधान, और सेमीकंडक्टर चिप्स के नॉन-डिस्ट्रक्टिव परीक्षण में किया जा सकेगा।
तीन-आयामी चिप संरचनाओं और क्रायोजेनिक प्रोसेसरों की जटिलता को देखते हुए पारंपरिक उपकरण अक्सर विफल रहते हैं, जबकि QDM इन सीमाओं को पार करते हुए उच्च-रिज़ॉल्यूशन 3D मैपिंग प्रदान करता है।
प्रो. साहा की टीम इसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन लर्निंग आधारित कंप्यूटेशनल इमेजिंग के साथ एकीकृत करने की योजना बना रही है, जिससे इसका उपयोग चिप डायग्नोस्टिक्स, जैविक इमेजिंग और भू-चुंबकीय अध्ययन में भी संभव होगा।
भारत ने इस क्षेत्र में अपना पहला क्वांटम डायमंड माइक्रोस्कोपी पेटेंट भी सुरक्षित किया है, जो स्वदेशी क्वांटम प्रौद्योगिकी में देश की क्षमता को और सुदृढ़ करता है।
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