जब किसी कंपनी से ग्राहक से पहले उसके टॉप अधिकारी निकलने लगें, तो ये सिर्फ अफवाह नहीं, एक गंभीर चेतावनी होती है।
इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन बाजार में धमाकेदार एंट्री लेने वाली ओला इलेक्ट्रिक आज खुद एक नेतृत्व संकट से जूझ रही है। बीते कुछ महीनों में कंपनी ने न सिर्फ बिक्री में गिरावट देखी है, बल्कि स्टॉक की कीमत भी गिर गई है, नियामकीय कार्रवाई झेलनी पड़ी है, और अब सीनियर मैनेजमेंट की टीम भी तेजी से खाली हो रही है।
ताजा झटके:
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नीतिन गोलानी, जो कि पहले बायजूस में थे और ओला इलेक्ट्रिक में चीफ बिजनेस ऑफिसर बने थे, केवल तीन हफ्तों में ही कंपनी छोड़ गए।
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निकिल उपाध्ये, यूनाइटेड कलर्स ऑफ बेनेटन से आए थे, पर एक हफ्ते में ही रिजाइन कर दिया।
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जनरल काउंसल रोहित कुमार और उनकी डिप्टी मरिशा शुक्ला जुलाई के अंत तक विदाई ले रहे हैं।
ये सब तब हो रहा है जब कंपनी के स्टोरों पर रेड्स हो रही हैं क्योंकि इनके पास जरूरी ट्रेड सर्टिफिकेट्स नहीं हैं। इसी के साथ, केंद्र सरकार कंपनी द्वारा रिपोर्ट की गई बिक्री और वाहन रजिस्ट्रेशन आंकड़ों में अंतर की जांच कर रही है।
IPO के बाद से खाली होते पद:
IPO के बाद से CPO सुवोनिल चटर्जी, CMO अंशुल खंडेलवाल, CHRO एन. बालचंदर, और सेल्स हेड महेश एलंथट जैसे बड़े नाम कंपनी छोड़ चुके हैं। अब तक इन पदों की जगह कोई नहीं ली गई है।
आंतरिक टीम में भी हलचल:
संस्थापक भाविश अग्रवाल के साथ काम कर रहे भरोसेमंद लोग - उनके भाई अंकुश अग्रवाल, बिजनेस हेड विशाल चतुर्वेदी और तुषार मेहंदी भी 1 जुलाई से ऑफिस से नदारद थे। इनमें से सिर्फ मेहंदी अब तक वापस लौटे हैं।
व्यवसाय पर असर:
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रोडस्टर X मोटरबाइक, जो बहुप्रतीक्षित थी, फीकी लॉन्च रही।
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महाराष्ट्र में 385 स्टोर बंद और 576 वाहन जब्त किए गए हैं।
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तेज़ी से 800 से 4,000 स्टोर खोलने के कारण कागज़ी औपचारिकताएं अधूरी रह गईं, जिससे रेड्स की स्थिति बनी।
स्टॉक मार्केट का मिला-जुला रुख:
Q1 परिणामों के बाद स्टॉक में सोमवार को 18% उछाल आया, लेकिन मंगलवार को यह 6.34% गिरकर ₹44.14 पर बंद हुआ।
हालांकि लागत में कटौती और मार्जिन सुधार दिखे हैं, साल-दर-साल बिक्री और रेवेन्यू लगभग आधे रह गए हैं।
बाजार में हिस्सेदारी गिर रही है:
FY25 की शुरुआत में ओला की मार्केट शेयर 50% थी, जो अब FY26 Q1 में 20% से भी नीचे आ गई है।
आगे का रास्ता:
ओला अब विस्तार के बजाय प्रॉफिटेबिलिटी पर फोकस करने की बात कह रही है, लेकिन लीडरशिप का ये शून्य, नियामकीय दबाव और ग्राहकों का भरोसा—इन सबके बीच कंपनी के लिए राह आसान नहीं होगी।