सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने रविवार (21 दिसंबर, 2025) को कहा कि केंद्र सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को व्यावहारिक रूप से समाप्त कर दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि मनरेगा की जगह लाए गए ‘विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)’ यानी VB-G RAM G विधेयक के जरिए न केवल योजना का नाम बदला गया है, बल्कि उसकी पूरी मूल भावना को भी बदल दिया गया है।
लातूर में पीटीआई से बातचीत करते हुए प्रशांत भूषण ने कहा कि मनरेगा एक अधिकार आधारित योजना थी, जिसके तहत हर ग्रामीण परिवार को न्यूनतम मजदूरी पर कम से कम 100 दिनों का रोजगार पाने का कानूनी अधिकार था। यदि सरकार रोजगार उपलब्ध कराने में विफल रहती थी, तो उसे मुआवजा देना पड़ता था। लेकिन नए विधेयक में इस अधिकार को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है।
उन्होंने कहा कि सरकार ने अब इस योजना को “बजट आधारित” बना दिया है। इसका मतलब यह है कि अब यह सरकार की इच्छा पर निर्भर करेगा कि वह कितना धन उपलब्ध कराएगी और कितना बोझ राज्यों पर डालेगी। इससे गरीब और ग्रामीण परिवारों के लिए रोजगार की कोई गारंटी नहीं रह जाएगी।
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प्रशांत भूषण ने यह भी कहा कि संसद के हाल ही में संपन्न शीतकालीन सत्र में इस विधेयक को विपक्ष के तीव्र विरोध के बावजूद पारित कर दिया गया। विपक्ष ने महात्मा गांधी का नाम हटाने और राज्यों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ डालने को लेकर कड़ा एतराज जताया था।
उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने इस बदलाव के जरिए मनरेगा जैसी सामाजिक सुरक्षा योजना को कमजोर कर दिया है, जिसने वर्षों तक ग्रामीण भारत में बेरोजगारी और गरीबी से निपटने में अहम भूमिका निभाई। भूषण के अनुसार, नए कानून से राज्यों की आर्थिक स्थिति पर दबाव बढ़ेगा और ग्रामीण रोजगार व्यवस्था अस्थिर हो जाएगी।
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