पश्चिम बंगाल में पिछले सप्ताह आई भारी बारिश के बाद बाढ़ और भूस्खलन ने हजारों लोगों के जीवन को प्रभावित किया है। दार्जीलिंग, जिसे राज्य का "क्वीन ऑफ हिल्स" कहा जाता है, इस प्राकृतिक आपदा से सबसे अधिक प्रभावित हुआ। रिपोर्ट के अनुसार, इस त्रासदी में 30 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, जबकि कई लोग अब भी दूरदराज़ क्षेत्रों में लापता हैं।
स्थानीय निवासी और बचावकर्मी कठिन परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। पहाड़ी इलाकों में फंसे लोगों को सुरक्षित स्थानों पर लाना चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है। बाढ़ और भूस्खलन के कारण कई घर, सड़कें और पुल क्षतिग्रस्त हो गए हैं, जिससे राहत और बचाव कार्यों में बाधा उत्पन्न हो रही है।
हालांकि राजनीतिक दलों के बीच आपदा प्रबंधन को लेकर निंदा और आरोप-प्रत्यारोप चल रहे हैं, लेकिन स्थानीय लोगों की वास्तविक कठिनाइयां इससे कहीं अधिक गंभीर हैं। श्राबना चटर्जी की रिपोर्ट के अनुसार, बाढ़ का पानी धीरे-धीरे घट रहा है, लेकिन इसके बावजूद प्रभावित इलाकों में विनाश और पीड़ा की कहानियां सामने आ रही हैं।
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विशेषज्ञों का कहना है कि दार्जीलिंग जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन की आशंका हमेशा रहती है और इस तरह की आपदाओं से निपटने के लिए स्थायी अवसंरचना और आपातकालीन तैयारी की आवश्यकता है। स्थानीय प्रशासन और राहत संगठनों को मिलकर मनुष्यों और संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी।
इस आपदा ने दार्जीलिंग के निवासियों और पर्यटकों को चेतावनी दी है कि प्राकृतिक आपदाओं के प्रति सतर्क और तैयार रहना कितना जरूरी है। पहाड़ों की शांति और सुंदरता के बीच यह त्रासदी लोगों के लिए गहरी पीड़ा और संवेदनशीलता का संदेश है।
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