डोनाल्ड ट्रंप के दौर से भारत को कई महत्वपूर्ण रणनीतिक और कूटनीतिक सबक मिले हैं। पहला बड़ा संदेश यह है कि वैश्विक राजनीति में रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy) अब भी जीवित और आवश्यक है। भारत ने यह समझ लिया है कि केवल किसी एक महाशक्ति के साथ पूरी तरह से जुड़ना उसके दीर्घकालिक हितों के लिए सही नहीं होगा।
दूसरा सबक यह है कि नवउदारवाद (Neoliberalism) की पारंपरिक सोच अब कमजोर पड़ रही है। वैश्विक स्तर पर संरक्षणवाद, घरेलू उद्योगों को प्राथमिकता और आत्मनिर्भरता पर जोर बढ़ रहा है। भारत को भी अपनी आर्थिक और व्यापारिक नीतियों को इस बदलते रुझान के अनुरूप ढालना होगा।
अमेरिका के साथ रिश्तों के संदर्भ में भारत के लिए यह स्पष्ट हुआ कि न तो अत्यधिक अधीनता और न ही टकराव की नीति उपयोगी है। स्थायी और संतुलित संबंध तभी संभव हैं जब भारत अपनी स्वतंत्र विदेश नीति को बनाए रखते हुए पारस्परिक हितों पर ध्यान केंद्रित करे।
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सॉफ्ट पावर (Soft Power) के मोर्चे पर भी भारत के लिए सबक है कि यह शक्ति स्वाभाविक और प्रभावी होनी चाहिए। अत्यधिक शोरगुल या जोर-जबर्दस्ती से वैश्विक छवि नहीं सुधरती। बल्कि सांस्कृतिक प्रभाव, कूटनीति और मूल्यों के माध्यम से स्वाभाविक रूप से प्रभाव डालना ही सच्ची सॉफ्ट पावर है।
कुल मिलाकर, ट्रंप दौर ने भारत को यह सिखाया कि वैश्विक राजनीति में अपनी स्वायत्तता बनाए रखना, बदलते आर्थिक परिदृश्य को समझना और सॉफ्ट पावर का विवेकपूर्ण उपयोग करना ही भविष्य में मजबूत विदेश नीति की कुंजी होगी।
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