भारत और अमेरिका के बीच चल रही अंतरिम व्यापार वार्ताओं में इस बात की संभावना जताई जा रही है कि भारत 10 से 15 प्रतिशत आयात शुल्क (टैरिफ) पर सहमत हो सकता है। हालांकि, यह कोई तय नीति नहीं है, बल्कि अभी भी वार्ताएं जारी हैं और कई मुद्दे अनसुलझे बने हुए हैं।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, भारत इस प्रस्तावित समझौते के तहत श्रम-गहन उत्पादों जैसे परिधान, जूते-चप्पल, गहनों आदि पर 10% और अन्य श्रेणियों पर अधिकतम 15% टैरिफ पर विचार कर रहा है। लेकिन यह स्थिति तब बेहतर मानी जाएगी जब इसकी तुलना वियतनाम (20%) और इंडोनेशिया (19%) जैसे देशों से की जाती है, जिन्होंने अमेरिका के साथ अपने-अपने समझौते में ऊँचे टैरिफ स्वीकारे हैं।
हालांकि अमेरिका की तरफ से अब भी डेयरी उत्पादों और जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) फसलों को लेकर कड़ा रुख बना हुआ है। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, "अमेरिका इन दोनों सेक्टरों में बाजार पहुंच की मांग कर रहा है, जबकि भारत का मत है कि ये अत्यंत संवेदनशील क्षेत्र हैं और इस पर फिलहाल समझौता करना संभव नहीं।"
अधिकारियों की एक टीम फिलहाल वॉशिंगटन में मौजूद है और दोनों पक्ष अगस्त से पहले किसी अस्थायी 'मिनी डील' पर काम कर रहे हैं, ताकि पूर्ण व्यापार समझौते की दिशा में एक मजबूत नींव रखी जा सके।
इस वार्ता को लेकर प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) के अध्यक्ष एस. महेंद्र देव ने कहा, "समझौता तभी संभव है जब दोनों देशों के राष्ट्रीय हितों में संतुलन बने। भारत को अपने हितों से समझौता नहीं करना चाहिए।"
इसके साथ ही अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा रूसी तेल पर भारत के स्टैंड को लेकर कोई व्यापारिक दबाव न डालने की भी पुष्टि की गई है।
वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, जीएम फसलों और डेयरी जैसे मुद्दों को अंतिम समझौते तक के लिए टालने का विकल्प खुला है। आगामी चुनावों को देखते हुए भारत फिलहाल इन मुद्दों पर ‘सावधानी की नीति’ अपना रहा है।
निष्कर्ष:
10-15% टैरिफ पर भारत की संभावित सहमति इस दिशा में एक अहम कदम हो सकता है, लेकिन जब तक विवादित क्षेत्रों पर स्पष्ट समाधान नहीं होता, तब तक यह सौदा केवल 'संभावना' भर ही रहेगा—तय समझौता नहीं।