झारखंड के सरकारी अस्पतालों में रक्त संक्रमण के बाद कई बच्चों में एचआईवी संक्रमण की पुष्टि ने राज्य के स्वास्थ्य तंत्र की लापरवाही और उदासीनता को उजागर कर दिया है। यह त्रासदी बताती है कि जीवन बचाने वाली प्रक्रिया कैसे एक जानलेवा खतरे में बदल गई है।
प्रारंभिक जांच में सामने आया है कि जिस रक्त बैंक से थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को रक्त दिया गया, वह 2023 से बिना लाइसेंस के संचालित हो रहा था। यहां रक्त जांच में गंभीर अनियमितताएं, दाता स्क्रीनिंग की लापरवाही और निगरानी की कमी पाई गई। 259 दाताओं के 44 नमूनों में से चार एचआईवी पॉजिटिव पाए गए, जो स्वास्थ्य सुरक्षा तंत्र की पूरी श्रृंखला के ढहने का संकेत है।
थैलेसीमिया से जूझ रहे बच्चों के लिए झारखंड में नियमित रक्त संक्रमण जीवनरेखा है, लेकिन राज्य के छोटे जिलों में स्वास्थ्य ढांचा लंबे समय से कमजोर है। अधिकांश जिला रक्त बैंकों में एचआईवी के शुरुआती चरण की पहचान की तकनीक नहीं है। न्यूक्लिक एसिड टेस्टिंग (NAT) केवल रांची में उपलब्ध है, जिससे संक्रमण के शुरुआती मामलों का पता नहीं चल पाता।
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राष्ट्रीय रक्त नीति 2002 में स्वैच्छिक रक्तदान और कठोर जांच की अनिवार्यता तय की गई थी, परंतु व्यवहार में इसका पालन नहीं होता। एलिसा टेस्ट जैसे आवश्यक परीक्षणों को अक्सर औपचारिकता के रूप में पूरा किया जाता है।
सरकार ने मामले में कई अधिकारियों को निलंबित कर जांच शुरू की है, पर यदि यह कार्रवाई केवल दिखावे तक सीमित रही तो हालात नहीं बदलेंगे। इस त्रासदी को झारखंड को अपने स्वास्थ्य ढांचे में व्यापक सुधार का चेतावनी संकेत मानना चाहिए, ताकि हर मरीज की सुरक्षा केवल कागजों पर नहीं, बल्कि व्यवहार में सुनिश्चित हो।
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