कर्नाटक के सहकारिता मंत्री के.एन. राजन्ना ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। यह फैसला उन्होंने उस विवाद के बाद लिया, जो उनके ‘वोट चोरी’ संबंधी बयान के चलते खड़ा हुआ था।
राजन्ना ने हाल ही में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कहा था कि मतदाता सूची में अनियमितताएं उस समय भी हुई थीं जब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी। उनके इस बयान ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी और विपक्ष ने इसे कांग्रेस के खिलाफ सबूत के तौर पर पेश किया।
सूत्रों के अनुसार, बयान पर बढ़ते दबाव और पार्टी के अंदर असंतोष के चलते राजन्ना ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को अपना इस्तीफा सौंप दिया। उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य किसी पर आरोप लगाना नहीं था, बल्कि वह चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता की आवश्यकता पर ध्यान आकर्षित करना चाहते थे।
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हालांकि, विपक्षी भाजपा ने इसे कांग्रेस सरकार की “मतदाता सूची में हेराफेरी” की स्वीकारोक्ति करार दिया। भाजपा नेताओं ने चुनाव आयोग से इस मामले की विस्तृत जांच की मांग की है।
राजन्ना के समर्थकों का कहना है कि उनके बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया, जबकि उनका मकसद चुनाव प्रणाली की खामियों को सुधारने पर जोर देना था। लेकिन पार्टी नेतृत्व ने यह मानते हुए कि यह मुद्दा कांग्रेस की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है, उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया।
इस घटना के बाद राज्य की राजनीति में नए सिरे से बहस छिड़ गई है कि क्या राजनीतिक दलों के नेताओं को चुनाव प्रक्रिया से जुड़े मुद्दों पर बयान देते समय अधिक सतर्क रहना चाहिए, खासकर जब वह सत्तारूढ़ दल का हिस्सा हों।
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