भारत और यूनाइटेड किंगडम (यू.के.) के बीच प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते (FTA) को लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञों और नागरिक समाज संगठनों ने गंभीर चिंता जताई है। एक नई रिपोर्ट के अनुसार, यह समझौता भारत की सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है, विशेषकर जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता और affordability के लिहाज से।
रिपोर्ट में बताया गया है कि यू.के. सरकार, एफटीए के जरिए बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) को मजबूत करने की कोशिश कर रही है, जिससे भारत की जेनेरिक दवा उद्योग को बाधाएं झेलनी पड़ सकती हैं। भारत विश्वभर में सस्ती दवाओं का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है, खासकर विकासशील देशों के लिए। ऐसे में अगर पेटेंट कानूनों को सख्त किया जाता है, तो इससे न केवल भारत में दवाओं की कीमतें बढ़ेंगी, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी दवा आपूर्ति प्रभावित हो सकती है।
इसके अलावा, विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि यदि एफटीए में विवाद निपटान के लिए निवेशक-राज्य विवाद निपटान तंत्र (ISDS) जैसी शर्तें शामिल होती हैं, तो दवा कंपनियां सरकारों पर मुकदमा कर सकती हैं, जिससे सार्वजनिक नीति और स्वास्थ्य पर नियंत्रण कमजोर हो सकता है।
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स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और संगठनों ने भारत सरकार से मांग की है कि वह एफटीए में ऐसे प्रावधानों को शामिल न करे जो देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति और सस्ती दवाओं की पहुंच को खतरे में डालें।
यह मुद्दा अब नीति निर्माताओं और आम जनता दोनों के लिए गंभीर बहस का विषय बनता जा रहा है।
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