1993 के फर्जी मुठभेड़ मामले में एक पूर्व पंजाब पुलिस अधिकारी को 10 साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई गई है। इस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट के 1995 के निर्देशों पर सीबीआई द्वारा की गई थी।
सीबीआई की जांच में सामने आया कि जिन दो लोगों को "अनजान आतंकवादी" बताकर मुठभेड़ में मारा गया था, वे वास्तव में पंजाब पुलिस के दो कांस्टेबल थे। घटना को एक आतंकवादी मुठभेड़ का रूप दिया गया था, लेकिन जांच में पाया गया कि यह पूरी तरह से पूर्व-नियोजित फर्जी मुठभेड़ थी।
पूर्व अधिकारी पर आरोप था कि उसने जानबूझकर अपने ही विभाग के दो पुलिसकर्मियों को मारकर उन्हें आतंकवादी घोषित कर दिया, ताकि प्रशंसा, पदोन्नति और बहादुरी पुरस्कार हासिल किए जा सकें। अदालत ने इसे न्याय व्यवस्था पर गंभीर हमला माना और दोषी अधिकारी को दोष सिद्ध करते हुए उसे 10 वर्षों की कठोर सजा सुनाई।
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मामले में अदालत ने कहा कि पुलिस बल पर लोगों का भरोसा बनाए रखने के लिए ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई जरूरी है। सीबीआई ने पर्याप्त सबूतों के साथ अदालत में चार्जशीट दाखिल की थी, जिसमें गवाहों के बयान, दस्तावेजी प्रमाण और फॉरेंसिक रिपोर्ट शामिल थीं।
यह फैसला उन कई मामलों में से एक है, जिनमें पंजाब के अशांत दौर में मानवाधिकार उल्लंघन और फर्जी मुठभेड़ों की शिकायतें सामने आई थीं। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच से यह सुनिश्चित हुआ कि न्यायिक प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी रही।
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